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चन्द्रमा का दिव्य रथ पुराण के अनुसार चन्द्रमा का रथ तीन पहियों का रथ है जिसे 10 श्वेत रंग के घोड़े खींचते हैं जो रथ में लगाम के बाएं पांच और दाहिने पांच रहते हैं। ये दस घोड़े मन द्वारा नियंत्रित पंच ज्ञानेन्द्रिय और पंच कर्मेन्द्रिय हैं जिन्हें मन के स्वामी चन्द्रदेव लगाम द्वारा नियंत्रित करते रहते हैं। चन्द्रमा के दसों घोड़ों के नाम हैं—ययु, त्रिमना, वृष, राजीवल, वाम, तुरण्य, हंस, व्योमी और मृग। रथ के तीन पहिये तीन गुण सत्व, रज और तमस हैं। वायु पुराण के अनुसार यह रथ अश्व और सारथि के साथ जल के भीतर से उत्पन्न हुआ है।
इस रथ की तुलना उपनिषद के मन्त्र से करें –
“आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव च।
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ॥

अपनी आत्मा को रथी, शरीर को रथ, बुद्धि को सारथि तथा मन को ही लगाम जानना चाहिए ॥
इन्द्रियाणि हयानाहुर्विषयांस्तेषु गोचरान्। जङ्गमानि विमानानि हृदयानि मनीषिणः ।।

इन्द्रियों को अश्व कहा गया है, जो अपने विषय रूपी मार्ग पर गमन करते हैं, परन्तु मनीषियों का हृदय विमान के समान इन सबसे ऊपर उठा हुआ होता है ॥

महाभारत भीष्म पर्व के अनुसार चन्द्रमण्डलका व्यास ग्यारह हजार योजन है और उसकी परिधिका विस्तार तैंतीस हजार योजन है तथा उसका वैपुल्यगत विस्तार (मोटाई) उनसठ हजार योजन है –
चन्द्रमास्तु सहस्राणि राजन्नेकादश स्मृतः ॥
विष्कम्भेण कुरुश्रेष्ठ त्रयस्त्रिंशत् तु मण्डलम्।
एकोनषष्ठिविष्कम्भं शीतरश्मेर्महात्मनः ॥

भागवत महापुराण के अनुसार सूर्य की किरणों से एक लाख योजन ऊपर चन्द्रमा का रथ स्थित है। यह चन्द्रमणि से निर्मित है और सूर्य की जलमय रश्मियाँ इसकी ऊर्जा का स्रोत हैं. उसकी चाल बहुत तेज है, इसलिए यह सब नक्षत्रों से आगे रहता है। चन्द्रमा सूर्य के एक वर्ष के मार्ग को एक मास में, सूर्य के एक मास के मार्ग को सवा दो दिन में और एक पक्ष के मार्ग को एक ही दिन में तय कर लेता है। चन्द्रमा से तीन लाख योजन ऊपर अभिजित सहित अट्ठाईस नक्षत्र हैं जो मेरु को दायीं और रख कर घूमते हैं।