ज्योतिष के अनुसार मेष, वृष और कन्या राशि गेहूं-जौ से सम्बन्धित है. अश्विन महीने से गेहूं की बुआई शुरू होती है और कार्तिक महीने तक चलती (अक्टूबर-नवम्बर) इसलिए यह मेष और वृष राशि से भी सम्बन्धित है. लेकिन यह फसल शनि की शरद ऋतू में फलती फूलती है इसलिए इस पर शनि का भी गहरा प्रभाव है. ज्योतिष में शनि आयुष्य कारक है, आयु पर, जवानी पर शनि का अधिपत्य है. काल चक्र में नेचुरल रोगभाव का स्वामी बुध है जिसका रंग हरा है. इसकी घास दूब या दूर्वा औषधि है. जन्म कुंडली में अष्टम हाउस आयुष्य है और षष्टम रोग-व्याधि का हॉउस होता है. ज्योतिष में दोनों मिलकर राजयोग बनाते हैं. इस प्रकार देखें तो दोनों की औषधियां और अन्न, आयु और रोग के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण हैं. शनि का अन्न काली उड़द जोड़ों के दर्द में एक दवा है यदि व्यक्ति सप्ताह में काली उड़द की खिचड़ी खाए. यहाँ हम गेहूं-दूब के सम्बन्ध में बता रहे हैं कि यह कैसे जवान रख सकता है. गेहूँ हमारे आहार का प्रमुख घटक है. इसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है. अपने देश के प्रायः सभी क्षेत्रों में गेहूँ -जौ की खेती होती है. अन्य अनाजों की अपेक्षा गेहूँ के दानों के अतिरिक्त इसके छोटे – छोटे हरे ताजे – पौधे भी पोषण एवं रोगनाशक की दृष्टि से बहुत ही गुणकारी होते हैं. अनुसंधानकर्ता चिकित्सा विज्ञानियों ने इस संदर्भ में महत्वपूर्ण खोजें की हैं.
अमेरिका की सुप्रसिद्ध चिकित्सक डाक्टर एन. विग्मोर ने गेहूँ की पोषक शक्ति एवं उसके औषधीय गुणों का स्वयं पर किये गये अनुसंधानों एवं प्रयोगों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है. उनके अनुसार संसार का कोई ऐसा रोग नहीं जो गेहूँ के जवारे रस के सेवन से ठीक न हो सके. कैंसर जैसे घातक रोग भी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में इसके प्रभाव से अच्छे होते पाये गये हैं. कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खाँसी, पीलिया, ज्वर , मधुमेह, वात व्याधि , बवासीर जैसे रोगों में भी गेहूँ के छोटे पौधों का रस लाभकारी सिद्ध होता है. फोड़े – फुंसियों एवं घावों पर इसकी पुलटिस बनाकर बाँधने से वह एण्टीसेप्टिक तथा एण्टी इन्फ्लैमेटरी औषधियों की तरह काम करता है. इसके माध्यम डा. विग्मोर ने कितने ही कष्टसाध्य रोगियों का सफलतापूर्वक उपचार किया और उन्हें स्वस्थ किया है.
पोषक तत्वों की अधिकता के कारण ही गेहूँ को खाद्यान्नों में सर्वोपरि माना गया है. इसमें वे सभी पौष्टिक तत्व विद्यमान होते हैं जो शरीर को स्वस्थ व तन्दुरुस्त बनाये रखने के लिए आवश्यक हैं, यथा – प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल आदि. विश्लेषणकर्ताओं के अनुसार प्रति 100 ग्राम गेहूँ के आटे में नमी – 12.2 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट- 694 ग्राम, कैलोरी प्रोटीन – 12.1 ग्राम, वसा – 1.7 ग्राम, मिनरल्स – 2.7 ग्राम, रेशा – 1.09 ग्राम, कैल्शियम- 48 मि.ग्रा. फास्फोरस – 355 मि.ग्रा. , लोहा, 4.09 मि.ग्रा., कैरोटीन – 29 , थियामिन – 0.49 रिबोफ्लेविन – 0.17 मि.ग्रा. नियासिन 4.3 मि.ग्रा. और फोलिक एसिड – 0.12.1 मि.ग्रा. मात्रा में पाया जाता है.
वृद्धावस्था की कमजोरी दूर करने में गेहूँ के जवारे का रस किसी भी उत्तम टानिक से कम नहीं, वरन् अधिक ही उत्तम सिद्ध हुआ है. यह एक ऐसा प्राकृतिक टानिक है जिसे हर आयुवर्ग के नर – नारी जब तक चाहें प्रयोग कर सकते हैं. अंग्रेजी दवाओं – टानिकों का अधिक दिनों तक सेवन नहीं किया जा सकता, अन्यथा वे लाभ के स्थान पर नुकसान ज्यादा पहुँचाते हैं. परन्तु इस रस के साथ ऐसी कोई बात नहीं. पोषकता, गुणवत्ता एवं हरे रंग के कारण गेहूँ के पौधे के रस को ‘ग्रीन ब्लड’ की संज्ञा दी गयी है. गेहूँ के ताजे जवारे के साथ यदि थोड़ी – सी हरी दूब – दूर्बाघास एवं 2 – 4 दाने कालीमिर्च को पीसकर रस निकाला और उसका सेवा किया जाए तो पुराने से पुराना एलर्जिक रोग भी जड़ – मूल से नष्ट हो जाता है और शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित होकर युवाओं जैसी स्फूर्ति आ जाती है. यहाँ ध्यान रखने योग्य विशेष बात यह है कि दूर्बाघास सदैव साफ-स्वच्छ स्थानों जैसे खेत, बाग, बगीचों, की ही प्रयुक्त की जानी चाहिए. शहर में इसे भी छोटे गमलों, क्यारियों, में गेहूँ की भाँति ही उगाया जा सकता है.
गेहूँ के जवारे उगाने का सबसे सरल तरीका यह है कि छोटे – छोटे सात मिट्टी के गमले लिये जाएँ और उन्हें मिट्टी से भर दिया जाए. मिट्टी भुरभुरी और रासायनिक खाद से रहित होनी चाहिए. अब इन गमलों में क्रम से पहले दिन एक गमले एक मट्टी गेहूँ बो दिया जाए तो दूसरे दिन दूसरे गमले में. दिन में 1 – 2 बार सिंचाई कर दी जाए. इस प्रकार गेहूँ अंकुरित होकर 6 – 7 दिन में जब जवारे थोड़े बड़े हो जाएँ तो आवश्यकतानुसार आधे गमले के कोमल जवारों को जड़ सहित उखाड़ लिया जाए. जवारे 7 -8 इंच के रहें तभी उन्हें उखाड़ लेना चाहिए, अन्यथा ज्यादा दिनों तक पड़े रहने से उनसे वह लाभ कम मिलता है, जिसकी अपेक्षा की जाती है. जवारों का रस सुबह खाली पेट लेना अधिक उपयोगी सिद्ध होता है। रस पीने के एक घंटे बाद ही कुछ और चीज खायी-पीयी जाए. जवारे छाया में ही उगाये जाए. उन्हें केवल आधा घंटे के लिए हलकी धूप में रखा जा सकता है.
जवारों से रस निकालने का सरल तरीका यह है कि कोमल पौधे उखाड़ कर उनका जड़ वाला हिस्सा काटकर अलग कर दिया जाए ओर डंठल तथा पत्ते वाले हिस्से को पानी में दो – तीन बार अच्छी तरह धोकर साफ कर लिया जाए. इसे सिल पर रखकर पानी के हलके छींटे मारते हुए बारीक लुग्दी की तरह पीस कर कपड़े से किसी बर्तन में छानकर सारा रस निकाल लिया जाए. इस रस को पीने से एक महीने के अंदर ही रक्त में रक्त – कणों की विशेषकर होमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर की कमजोरी दूर होने लगती है. नियमित सेवन से कुछ महीनों के भीतर ही रुग्णता दूर होकर दुबला – पतला शरीर हृष्ट-पुष्ट बन जाता है और खोया हुआ स्वास्थ्य फिर से प्राप्त हो जाता है. दूब – घास के सम्बन्ध में आरोग्य शास्त्रों में कहा गया है – “
देर्वेहि अमृत सम्पन्ने शतमूले शंताकूरे। शतपातक संहर्वि शतमायुष्य वर्धिनी॥
अर्थात् दूर्वाघास में अमृतरस भरा है. इसके नित्य सेवन से सौ वर्ष तक निरोग रहकर जिया जा सकता है. प्राचीन ऋषियों ने इस सूत्र में दूब की रोग- निवारक व स्वास्थ्य – संरक्षक शक्ति का ही संकेत किया है.
गेहूँ के जवारे के रस के साथ – साथ यदि गेहूँ और मेथी दाने को चार – एक के अनुपात में, चार चम्मच गेहूँ व एक चम्मच मेथी दाना स्वच्छ पानी से धोकर एक गिलास में भिगो दिया जाए और 24 घंटे बाद उसका पानी छान कर पी लिया जाए तो वृद्धावस्था को कोसों दूर भगाया जा सकता है. इस जल में आधा नीबू का रस, एक चुटकी सोंठ चूर्ण व दो चम्मच शहद मिला देने से वृद्धावस्था दूर करने वाले विटामिन ई, विटामिन सी और कोलीन नामक तीनों तत्वों के साथ ही एन्जाइम्स, लाइसिन, आइसोल्यूसिन, मेथोनाइन जैसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्यवर्द्धक पौष्टिक तत्व भी शरीर को प्राप्त होते रहते हैं. यह पेय पाचक एवं शक्तिवर्धक होने से संजीवनी रसायन की तरह काम करता है. इसी के साथ यदि उक्त छने हुए गेहूँ व मेथी दोने को को कपड़े में बाँधकर अंकुरित कर लिया जाए और दूसरे दिन सुबह खाली पेट नाश्ते के स्थान पर खूब चबा – चबाकर सेवन किया जाए तो इससे न केवल पाचन सम्बन्धी विकार दूर होते हैं, वरन् शरीर भी हृष्ट-पुष्ट व बलिष्ठ बनता है. नीबू, कालीमिर्च व सेंधा नमक मिलाकर इसे स्वादिष्ट बनाया जा सकता है.

