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 आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं. इसे कोजागरी पूर्णिमा व रास पूर्णिमा भी कहते हैं. इस पूर्णिमा में ही रासलीला हुई थी. हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत रखा जाता है और लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इसको कौमुदी व्रत भी कहते हैं. मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत बरसता है. इस दिन वैष्णवों ने उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान किया है. भागवत के इन दो श्लोकों में शरदपूर्णिमा के रक्ताभ स्वरूप की उपमा लक्ष्मी के मुखमंडल से दी गई है –
तदोडुराज: ककुभ: करैर्मुखंप्राच्या विलिम्पन्नरुणेन शन्तमै: । स चर्षणीनामुदगाच्छुचो मृजन्प्रिय: प्रियाया इव दीर्घदर्शन: ॥ २ ॥
द‍ृष्ट्वा कुमुद्वन्तमखण्डमण्डलंरमाननाभं नवकुङ्कुमारुणम् । वनं च तत्कोमलगोभी रञ्जितंजगौ कलं वामद‍ृशां मनोहरम् ॥ ३ ॥

चन्द्र मंडल में लक्ष्मी अथवा त्रिपुरसुन्दरी की पूजा करने की परम्परा है. शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र की किरणें औषधियों में अमृत भर देती है इसलिए इसदिन आँवले के पेड़ से आँवले तोड़ना बहुत अच्छा होता हैं . शरद पूर्णिमा के पहले तोड़े गए आँवले खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है.

इस साल की शरद पूर्णिमा 28 अक्टूबर को पड़ रही है और साथ ही इस साल का अंतिम चंद्रग्रहण भी 28 अक्तूबर को लगेगा. खंडग्रास चंद्रग्रहण भारत सहितअफ्रीका, यूरोप, एशिया, आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी उत्तरी भाग में भी दिखेगा.  इस दिन शाम 4:06 बजे चंद्रोदय हो जाएगा. चंद्रग्रहण का सूतक शाम 4:05 बजे से आरंभ होगा.  

मुहूर्त –

सूतक काल : शाम 4 बजे से रात 02.26 बजे तक।
ग्रहण काल : रात 01.05 से 02.24 बजे तक ।

पूजा कैसे करें –
चन्द्रग्रहण में वैसे सुतक होगा और मन्दिर कपाट बन्द होंगे लेकिन व्यक्तिगत जप किया जा सकता है. शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल में मंत्र जपने से उसका हजार गुना फल मिलता है. ग्रहण काल में मंत्रों को सिद्ध किया जा सकता है. जब तक जप करें देसी घी का दिया जलाकर रखें. पूर्णिमा मेष राशि के अश्विनी नक्षत्र पाद 4 में होगी. धार्मिक अनुष्ठान इस दिन ग्रहण शुरू होने से पूर्व शाम चार बजकर पांच मिनट से पूर्व ही संपन्न करने होंगे.

जिस दिन चंद्रग्रहण लगेगा, उसी दिन शरद पूर्णिमा है इसलिए खीर का कार्यक्रम नहीं रहेगा. ग्रहण में खीर दूषित हो जाएगा. देश के प्रमुख धार्मिक केन्द्रों से महूर्तवाले और पुजारी वर्ग अपना रैकेट चलाते हैं. ये हर पर्व में एक संदेह की स्थिति पैदा करते हैं जिस कारण देश भर में हर पर्व और त्यौहार दो दो दिन मनाया जाने लगा है. अब इसी पर्व में एक रैकेट यह भी मान रहा है कि किसी भी भोजन पात्र में तुलसी दल रख दिया जाए तो उस पर ग्रहण का प्रभाव नहीं होता. ऐसे में खीर में तुलसी दल या कुश रखने से ये दोष प्रभावी नहीं होगा. इस कनफूजन की स्थिति में मेरे मत से चलें. ग्रहण में पूजन सूतक काल के प्रारम्भ से पहले कर लें. खुले आकाश में खीर हरगिज न रखें. ग्रहण काल में परावैगनी किरणें निकलती जिससे अन्न आदि दोषित हो सकते हैं. यदपि की आधुनिक विज्ञान इसे मिथक कहता है और इसे नहीं मानता.