शारदीय नवरात्रि का आज अंतिम दिन है. सिद्धिदात्री के रूप में देवी ने अष्टमी तिथिमें अपने स्वरूप को चन्द्रमा की कलाओं की तरह ही पूर्ण कर लिया था. अष्टमी का चन्द्र विशेष महत्व का होता है इसलिए सिद्धिदात्री की पूजा महाष्टमी की पूजा कही जाती है. देवी त्रिपुरसुन्दरी के रूप में सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. सिद्धिदात्री के मुकुट पर अष्टमी का चन्द्र सुशोभित रहता है, ‘अष्टमीचन्द्र विभ्राज” ऐसा कहा गया है. महाष्टमी को विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. सिद्धिदात्री के रूप में पूर्ण उत्थान के बाद नवें दिन देवी ने महिषासुर का बध किया था इसलिए इसे महानवमी कहा जाता है. दशमी 24 अक्टूबर को पड़ रही है, इस दिन मां दुर्गा की विदाई दी जाएगी और दशहरा का पर्व मनाया जाएगा.
नवरात्रि के 9 दिन शक्ति पूजा का पर्व होता है, इन दिनों में मां दुर्गा भक्तों के घर में निवास करती हैं और भक्तों की पूजा-उपासना का फल प्रदान करती हैं. नवमी के दिन नवरात्रि का समापन हो जाता है. नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेस महत्व है क्योंकि शाक्त धर्म में ‘या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता कहा गया है’. शक्ति का कुछ अंश कन्याओं में भी प्रकट रहता है इसलिए उनकी मातृदेवी के रूप में पूजा करने से दुर्गा की प्रसन्नता होती है. नवरात्रि में दोनों अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन की परम्परा है.
मुहूर्त-
नवमी तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 22, 2023 को 07:58 पी एम बजे
नवमी तिथि समाप्त – अक्टूबर 23, 2023 को 05:44 पी एम बजे
कन्या पूजन –
कन्या पूजन के लिए नौ कन्याओं और एक बालक की आवश्यकता होती है. नौ कन्याओं को मां का स्वरूप और बालक को भैरव का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है. कन्याओं का चयन कामना भेद से किया जाता है. सर्व कार्य की सिद्धि के लिए ब्राह्मण की कन्या, धन-लाभ या प्राप्ति के लिए वैश्य की कन्या, विजय के लिए क्षत्रिय की कन्या और पुत्र के लिए शुद्र की कन्या ली जाती है. कहीं कहीं राज्य के लिए भी शुद्र की कन्या का पूजन का वर्णन मिलता है. कन्याओं की उम्र 2 वर्ष से 10 वर्ष तक के भीतर होनी चाहिए. दो वर्ष की कन्या को कुमारी, तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कन्या को कल्याणी, पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी, छह वर्ष की कन्या को कालिका, सात वर्ष की कन्या को चण्डिका, आठ वर्ष की कन्या को शाम्भवी, 9 वर्ष की कन्या को दुर्गा और दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा गया है. पूजा के लिए कन्या चुनते समय लूली, लंगड़ी, कानी कन्या न चुनें क्योंकि देवी के अंग भंग नहीं होते. उन्हें ‘सौम्या सौम्यतराशेष सौम्येभ्यस्त्वतिसुन्दरी’ कहा गया है. ऐसी कन्या पूजन करना अशुभ माना गया है. कन्याओं का पूजन सामर्थ्य के अनुसार पंचोपचार, षोडश उपचारों करना चाहिए.
कन्या पूजन में कन्याओं को हलवा चना के साथ पूड़ी, खीर, सब्जी आदि चीजें सामर्थ्य के अनुसार उन्हें प्यार से खिलाएं. भोजन के बाद कन्याओं को सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा या उपहार देकर लाल चुनरी ओढाएं और पैर छूकर आशीर्वाद लें.

