
1-जय तुम्हारी देख भी ली
जय तुम्हारी देख भी ली
रूप की गुण की, रसीली ।
वृद्ध हूँ मैं, वृद्ध की क्या,
साधना की, सिद्धी की क्या,
खिल चुका है फूल मेरा,
पंखड़ियाँ हो चलीं ढीली ।
चढ़ी थी जो आँख मेरी,
बज रही थी जहाँ भेरी,
वहाँ सिकुड़न पड़ चुकी है ।
जीर्ण है वह आज तीली ।
आग सारी फुक चुकी है,
रागिनी वह रुक चुकी है,
स्मरण में आज जीवन,
मृत्यु की है रेख नीली ।
2-मरा हूँ हजार मरण
मरा हूँ हजार मरण
पाई तब चरण-शरण ।
फैला जो तिमिर जाल
कट-कटकर रहा काल,
आँसुओं के अंशुमाल,
पड़े अमित सिताभरण ।
जल-कलकल-नाद बढ़ा
अन्तर्हित हर्ष कढ़ा,
विश्व उसी को उमड़ा,
हुए चारु-करण सरण ।
3-अशरण-शरण राम
अशरण-शरण राम,
काम के छवि-धाम ।
ऋषि-मुनि-मनोहंस,
रवि-वंश-अवतंस,
कर्मरत निश्शंस,
पूरो मनस्काम ।
जानकी-मनोरम,
नायक सुचारुतम,
प्राण के समुद्यम,
धर्म धारण श्याम ।