नक्षत्रों के गोत्र सभी 28 नक्षत्रों को ऋषि गोत्र से सम्बन्धित किया गया है जिनका उपयोग शादी व्याह में वर वधु के गोत्र मिलान में किया जाता है. यदि एक ही नक्षत्र में जन्मे वर वधु का विवाह किया जाय तो वह विपत्तिकारक होता है. गोत्र मिलान लग्न और राशि दोनों से करना चाहिए. दोनों ही अलग अलग गोत्र हों तो श्रेष्ठ माना जाता है जबकि यदि राशि या लग्न में कोई एक समान है तो मध्यम कहा गया है.
ज्योतिष के अनुसार यह क्रम कुछ इस प्रकार से है –
दस्रादिकानामृषयो मरीचि: श्रेष्ठो वसिष्ठो मुनिरन्गिराश्च।
अत्रि: पुलस्य: पुलह: क्रतुश्च क्रमेण भानामभिजिद्युताम् ।।
अभिजित के साथ अश्विनी आदि नक्षत्रों की गणना करने पर क्रमश: मरीचि, वशिष्ठ, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह तथा क्रतु ये सात गोत्र नक्षत्रों के होते हैं। प्रत्येक गोत्र में चार नक्षत्र आते हैं.

ग्रहों और नक्षत्रों के गोत्र और जाति बतलाने का क्या प्रयोजन है ? जाति एक महत्वपूर्ण विषय है, सृष्टि में हर चीज जाति से पहचानी जाती है जिसका आधार प्रकृति के त्रिगुण हैं. गुरु एक ब्राह्मण ग्रह हैं क्योंकि उसमे ब्राह्मण के सत्य, तप, सदाचार इत्यादि धर्म हैं। इसी प्रकार नक्षत्रों की जाति और गोत्र बतलाये गये हैं. हर एक नक्षत्र अपनी जाति और गोत्र के अनुसार फल प्रदान करता है। इनका उपयोग जातक के गुणों की परीक्षा करने, शादी व्याह में तथा साझेदारी इत्यादि में होता है.

