शैव-शाक्त सम्प्रदाय के 51 शक्तिपीठों में एक सिद्ध शक्तिपीठ पंजाब के जालंधर में स्थित है. इस मन्दिर को श्री देवी तालाब मंदिर भी कहा जाता है क्योकिं मन्दिर तालाब के मध्य स्थित है. मन्दिर जाने के लिए 12 फ़ीट चौड़ी जगह है. यहाँ माता सती का बायाँ वक्ष(स्तन) गिरा था. जालन्धर शक्ति पीठ की शक्ति त्रिपुरमालिनी हैं और यहाँ शिव ‘भीषण’ भैरव के रुप में विराजमान हैं. यहाँ माता त्रिपुरमालिनी विश्वतोमुखी कही जाती हैं. भगवती त्रिपुरमालिनी श्रीविद्या हैं और इनका निगर्भ योगिनी के रूप में पूजन किया जाता है. इनका मन्त्र निम्नलिखित है –
ह्रीं क्लीं ब्लें त्रिपुरमालिनी चक्रेश्वरी स्वाहा
अथवा
ह्रीं क्लीं ब्लें त्रिपुरमालिनी चक्रेश्वरी नम:
ऐसा मन्दिर का इतिहास कहता है कि वशिष्ठ, व्यास, मनु, जमदग्नि, परशुराम जैसे विभिन्न महर्षियों ने त्रिपुरा मालिनी की यहां आकर पूजा-आराधना की थी. पौराणिक कथा के अनुसार यहाँ भगवान शिव ने जांलधर नाम के राक्षस का वध किया, जिसके बाद से ही इस जगह का नाम जांलधर पड़ गया.

इसे ‘स्तनपीठ’ भी कहा जाता है जिसमे देवी का वाम स्तन कपडे से ढका रह्ता है और धातु से बना मुख के दर्शन भक्तों को कराए जाते हैं. मुख्य भगवती के मंदिर में तीन मूर्ति है. इन तीनों में मूर्ति में मां भगवती के साथ मां लक्ष्मी और मां सरस्वती विराजमान हैं. भक्त इस मंदिर में इन देवियों की मूर्ति की परिक्रमा करते हैं.
मां त्रिपुरमालिनी धाम में देश भर से भक्त दर्शन करने और मन्नतें मांगने के लिए आते हैं. मन्नतें पूरी होने पर खीर का प्रसाद तथा लाल झंडे लेकर बैंड बाजों के साथ मां त्रिपुरमालिनी का धन्यवाद करने पहुंचते हैं. मन्दिर बहुत भव्य है. भगवती मंदिर का शिखर सोने से बनाया गया है. 12 सीढ़ियां चढ़ने के बाद मंदिर का दरबार आता है. एक तरफ पीपल का पेड़ और मां का झूला है जिसकी पूजा की जाती है.

सिद्ध शक्तिपीठ मां त्रिपुरमालिनी मंदिर में नवरात्र के दिनों में दो पहर की पूजा विशेष होती है और नवरात्र के दिनों में रोजाना भजन संध्या का आयोजन भी किया जाता है. भजन संध्या में श्रद्धालु शामिल होकर मां की महिमा का गुणगान करते हैं. नवरात्रि इत्यादि पर्वों पर यहाँ विशेष लंग भी चलता है.

