वैतरणी नदी को यम मार्ग में स्थित बतलाया गया है. यह एक दुस्तर नदी है. देखने मात्र से प्राणियों में भय का संचार करने वाली यह नदी नाना प्रकार के भयाक्रांत करने वाले जीवों से भरी हुई है. यह अनेकों प्रकार के कीटाणुओं एवं वज्र दन्तक जीवों से भरी हुयी कही जाती है जिसको पार करना जीवात्मा के लिए कठिन होता है. गरुण पुराण के अनुसार जब मृत्यु को प्राप्त जीवात्मा यमलोक के रास्ते में वैतरणी के पास पहुँचता है तो भय से वह विलाप करता है, वहां घोर पीड़ा में तपते हुए व्यग्र होता है. गरुण पुराण में इस नदी का वीभत्स वर्णन है, जिसको पढ़ कर ही व्यक्ति का प्राण व्यथित हो जाए. लौकिक धरातल पर यह नदी गया तीर्थ में बहती है जहाँ हिंदू अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं . यहाँ गौ दान का ही सबसे बड़ा महात्म्य कहा गया है.

यह नदी वास्तव में तीनों धरातलों अधिभौतिक, अधिदैविक और अध्यात्मिक स्तरों पर बहती है जिसे योगी जन ही देख पाते हैं. अध्यात्मिक स्तर पर यह अस्रवों का प्रवाह रूप है जिससे व्यक्ति घोर मानसिक क्लेशों का शिकार होकर दारुण दुःख भोगता है. शात्रों के अनुसार इस पृथ्वी पर जिसनें गौ दान नहीं किया वह मृत्यु के बाद इस वैतरणी के पार नहीं जा पाता और कल्पों तक महाभय और दारुण दुखों को भोगते हुए विलाप करता रहता है. उसकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त नहीं होता .
गरुण पुराण के अनुसार मकर और कर्क की संक्रांति का पुण्यकाल, व्यतिपात योग, सूर्य ग्रहण, चन्द्र, संक्रांति या अमावस्या या जब भी दान देने की श्रद्धा उत्पन्न हो, उस समय गौ का श्रेष्ठ दान ब्राह्मण को करना चाहिए. इस कर्म में सिर्फ ब्राह्मण ही प्रशस्त है चाहे वह निकृष्ट ही क्यों न हो. अपने अगले जन्म के लिए प्रबंध करना कर्तव्य है क्योंकि उस यम मार्ग में प्राणी सदैव अकेला ही होता है. गरुण पुराण के अनुसार – कपिला गाय या लाल रंग की वैतरणी गाय ही दान देना चाहिए. गाय को सुवर्णमय करके, कांस्य पात्र की दोहनी से युक्त करना चाहिए और उसे दो काले रंग के वस्त्रों से आच्छादित करना चाहिए फिर उसे सप्त धन्य समन्वित करके ब्राह्मण को निवेदित करे.

अन्य समुचित कर्मकांड ब्राह्मण से करवाए, वैदिक ऋचाओं का गायन करवाए फिर दान करता वैतरणी गौ की स्तुति करे –
यम द्वारे महाघोरे श्रुत्वा वैतरणीम नदीम!
तार्तुकामो ददाम्येनाम तुभ्यं वैतरणीम नमः|
गावो में पुरतः सन्तु गावो में सन्तु पृष्ठतः|
गावो में परितः सन्तु गवां मध्ये वसाम्य्हम||
विष्णुरूप द्विज श्रेष्ठ! मामुद्धार महीसर!
सदक्षिणा मया दत्ता तुभ्यं वैतरणीम नमः!!
हे द्विज श्रेष्ठ! महाभयंकर वैतरणी नदी को सुनकर मैं उसको पार करने की अभिलाषा से आपको यह वैतरणी दान दे रहा हूँ. हे विप्र देव ! गाय मेरे आगे हों, गायें मेरे पीछे हों, गायें मेरे ह्रदय में रहे , गौए मेरे चारो तरफ हों, गायों के बीच में ही मैं निवास करूँ. हे विष्णु रूप ! द्विज वरेण्य ! भूदेव मेरा उद्धार करो ! मैं दक्षिणा सहित यह वैतरणी गौ आपको दे रहा हूँ . आप मेरा प्रणाम स्वीकार करो.
प्रार्थना उपरांत यम प्रतिमा के समक्ष सम्पूर्ण कर्मकाण्ड विधि पूर्वक करवा कर निर्भय हो जाय.
वैतरणी एकादशी
यह व्रत वैतरणी पार करने के क्रम में एक प्रमुख व्रत है. इस व्रत का भी बड़ा महात्म्य है, जिसे वृद्धावस्था में करना चाहिए. व्रत आरम्भ करने से एक दिन पूर्व कपिला गाय को घर लायें. दूसरे दिन दोपहर को सभी नित्य नैमित्तिक कर्म करने के बाद कपिला गाय की पूजा करे. गौ को पूर्व की तरफ मुख करके खड़ी करें और पितृ तर्पण के बाद शास्त्रोक्त विधि से पूजन करे. गाय के सम्पूर्ण अंगों पर चन्दन आदि सुवासित से मालिस करें फिर सम्पूर्ण अंगों के क्रम से उन उन देवताओं की पूजा करें जो उनमें विराजतें हैं.

सभी अंगों में चन्दन का छीटा दें फिर धूप दीप से पूजा करे. इसके अनंतर गोमाता को नमस्कार करते हुए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ें-
असिपात्रादिकं घोरं नदीं वैतरणीम तथा!
प्रसदात्ते तरिष्यामि गौरमातस्ते नमोस्तुते!!
गो माता ! तुम्हारी कृपा से मैं असिपत्रवन आदि घोर नरकों तथा वैतरणी नदी को पार कर जाऊंगा. तुम्हें बार बार नमस्कार है.
इसके बाद सुवर्णमंडित, वस्त्रालंकरणों से सुशोभित बछड़े सहित कपिला को ब्राह्मण को दान करें. अंत में श्रेष्ठ ब्राह्मणों को बुला कर पीपल पत्तो पर बैठाये और “ओउम तस्मै नमः आयातु” इस मन्त्र से सबको चावलों से पृथक पृथक अवाहन करें. पाद्य और अर्घ्य आदि निवेदित कर पंचोपचार से पूजन करें और फिर उनसे हवन करवाएं. होम में प्रत्येक ब्राह्मण 8-8 समिधाएँ, 8-8 घी की आहुतियाँ . 1-1 जौ की आहुति, और 8-8 तिल की आहुति दे. पुर्णाहुति “ तद्विष्णो परमं पदम्” इत्यादि मंत्रो से करे. अंत में 12, 8, 6, 4, २, या 1 ही दुधारू गाय दान करें. इस प्रकार समपन्न इस व्रत से व्यक्ति इस लोक में सुख प्राप्त करते हुए अंत काल में स्वर्ग में प्रतिष्ठित होता है. एकादशी व्रत के उद्यापन के निमित्त ही इस वैतरणी व्रत का अनुष्ठान किया जाता है.

