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पतंजलि योगसूत्र में विभूति पाद के अंतर्गत महर्षि ने ध्यान और संयम योग से प्रात की जा सकने वाली सिद्धियों का वर्णन किया है. यह सिद्धियाँ दो तरह की हैं -एक ध्यान और संयम, मन्त्र, तप और औषधि से प्राप्त होने वाली और दूसरी ईश्वरी प्रज्ञा को धारण करने से प्राप्त होने वाली. पहली प्रकार की सिद्धियाँ जो सूर्य, चन्द्र और ग्रह नक्षत्रों से सम्बन्धित हैं वो सूत्र नीचे दिए जा रहे हैं –

भुवनज्ञानं सूर्ये संयमात् ॥ ३.२६॥
शरीर से बाहर स्थित सूर्य में संयम करने से योगी को सभी लोक – लोकान्तरों का ज्ञान हो जाता है ।
चन्द्रे ताराव्यूहज्ञानम् ॥ ३.२७॥
चन्द्रमा में संयम करने से सभी तारों की ठीक ठीक स्थिति की जानकारी हो जाती है ।
ध्रुवे तद्गतिज्ञानम् ॥ ३.२८॥ 
ध्रुव तारे में संयम करने से अन्य तारा समूह की गति का ज्ञान हो जाता है ।

ऋषि त्रिकालदर्शी होते थे क्योंकि उनका मन सदैव ध्यान में संलग्न रहता था. वो ध्यान द्वारा दूरस्थ चीजों के वास्तविक स्वरूप को भलीभांति जान सकने में सक्षम थे और उन्होंने यही उपदेश किया कि मनुष्य भी जान सकता है. लेकिन वर्तमान समय में योग देहकेन्द्रित है और भांतिभांति प्रकार के आसन तक सीमित है. वास्तव में यह योग पतंजलि से सम्बन्धित नहीं है, पतंजलि को सिर्फ बदनाम किया जा रहा है और बेचा जा रहा है. जो आधुनिक समय में योग इंडस्ट्री है वह हठयोग है, पातंजल योग नहीं है. 

पतंजलि ने सिद्धियों की जो दूसरी कोटि का वर्णन किया है वह उच्चतर प्रज्ञा से उपलब्ध होने वाली सिद्धियाँ हैं,  जैसे ये निम्नलिखित सूत्र –
मैत्र्यादिषु बलानि ॥ ३.२३॥ 
मैत्री, करुणा, मुदिता इन तीन से जिनसे चित्त की प्रसन्नता होती है, उसको धारण करने और उन उपायों में संयम करने से इन तीनों भावों से अतिशय बल की प्राप्ति होती है ।
बलेषु हस्तिबलादीनि ॥ ३.२४॥ 

हाथी आदि बलशाली जीवो के बल पर सयंम करने से बल की प्राप्ति होती है. 
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच यम हैं। इनको सिद्ध कर लेने से या इसको धारण करने से तत्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं. मसलन अहिंसा को धारण करने से हिंसक जीव तुम्हारे सामने आयेगा तो अपनी हिंसक प्रवृत्ति को भूल जायेगा. किसी साधु के सामने कोई दुष्ट हत्यारा अपना स्वभाव भूल जाता है. इस कारण जंगल में ध्यान करने वाले ऋषियों को जंगली जीवों से कोई खतरा नहीं रहता था. यदि ज्योतिष को लें तो पतंजलि कहते हैं कि यदि नक्षत्रों के स्वरूप को जानना है तो नक्षत्रों की रानी पर ध्यान करें, नक्षत्र व्यूह का, उनके स्वरूप का ज्ञान हो जायेगा. हाथी आदि बलशाली जीवो के बल पर सयंम करने से बल की प्राप्ति होती है. बानर राज बाली को यह योग सिद्धि प्राप्त थी जिससे वह अपने सामने खड़े प्रतिद्वंदी से आधी शक्तियाँ ले लेता था. मन्त्र जप द्वारा योगी चारों महाभूतों पर नियन्त्रण कर लेता है और स्वयं शक्ति के साथ एकाकार कर समस्त शक्तियों का स्वामी बन जाता है.

प्राण विद्या को जानने वाला ब्रह्मांडीय रहस्यों को यूँ ही जान लेता है इसलिए ब्रह्म विद्या को सर्वश्रेष्ठ विज्ञान कहा गया है. भगवद्गीता में इसे एकमात्र नित्य ज्ञान कहा गया है और एकमात्र ज्ञान कहा गया है. “अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्।”