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भगवान कार्तिकेय का यह मन्दिर हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित है. इस मन्दिर को श्रापित माना गया है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में अगर किसी महिला ने कार्तिकेय भगवान का दर्शन भूल से भी कर लिया तो वह विधवा हो जाती है. यह मंदिर महाभारतकालीन माना जाता है. कुरुक्षेत्र में जो कुछ भी प्राचीन है वह महाभारत कालीन ही है. इस मन्दिर का महाभारत में इस प्रकार जिक्र है –
“पुण्यामाहु कुरुक्षेत्र कुरुक्षेत्रात्सरस्वती।
सरस्वत्माश्च तीर्थानि तीर्थेभ्यश्च पृथुदकम॥”
कुरुक्षेत्र पवित्र है और सरस्वती कुरुक्षेत्र से भी पवित्र है. सरस्वती तीर्थ अत्यंत पवित्र है, किन्तु पृथूदक इनमें सबसे अधिक पावन व पवित्र है॥ ‘पृथुदक’ शब्द महाराजा पृथु से इसका सम्बन्ध स्थापित करता है अर्थात यह अतिप्राचीन तीर्थ है. पद्मपुराण के अनुसार जो व्यक्ति सरस्वती के उत्तरी तट पर पृथुदक में जप करता हुआ अपने शरीर का त्याग करता है, वह नि:संदेह अमरता को प्राप्त करता है. इस क्षेत्र में श्री कृष्ण ने गीता के उपदेश दिए थे. इसीलिए कुरुक्षेत्र को अत्यंत धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का माना जाता है.

हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु कुरुक्षेत्र की पावन भूमि के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. यह श्रापित मंदिर कुरुक्षेत्र से करीब 20 किमी दूर पिहोवा में स्थित सरस्वती तीर्थ पर स्थित है. इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान कार्तिकेय की पिंडी मौजूद है. ऐसी मान्यता है कि अगर कोई महिला इस पिंडी को स्पर्श करती है या भूल से भी छू लेती है तो उसके पति की मृत्यु हो जाती है और वह सात जन्मों तक विधवा रहती है.


मंदिर के बाहर चेतावनी का एक बोर्ड भी लगाया गया है. गौरतलब है कि इस मन्दिर पर अभी तक कोई स्त्री अधिकारों के लिए लड़ने वाला सन्गठन या महिला नहीं पहुंची है. मंदिर में प्रवेश करने पर स्थानीय महंत और पुजारी भी महिलाओं को इस बात की जानकारी देते हैं. महिलाओं को हिदायत दी जाती है कि वह गर्भगृह के बाहर से ही कार्तिकेय महाराज का आशीर्वाद लें. यह नियम सिर्फ महिलाओं पर लागू नहीं है, बल्कि छोटी और नवजात बच्चियों पर भी लागू है और उन्हें भी गर्भगृह में प्रवेश करने की मनाही है.

कार्तिकेय की पिंडी पर सरसों का तेल चढ़ाने की परंपरा है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक, कार्तिकेय ने मां पार्वती से क्रोधित होकर अपने अपने शरीर का मांस और रक्त अग्नि को समर्पित कर दिया था. तब भगवान शिव ने उन्हें पिहोवा तीर्थ पर जाने के लिए कहा था. इसके साथ ये भी मान्यता है कि कार्तिकेय के गर्म शरीर को ठंडा करने के लिए ऋषि-मुनियों ने सरसों का तेल उन पर चढ़ाया था. जब उनके शरीर को शीतला मिल गई तो कार्तिकेय पिहोवा तीर्थ पर ही पिंडी के रूप में विराजित हो गए. इस मंदिर के गर्भ-गृह में पत्थर के दो ब्लॉक हैं और भगवान कार्तिकेय की दो प्रतिमाएं हैं. इन पर दीये जलते रहते हैं. श्रद्धालु इनमें तेल चढ़ाते हैं.
पिहोआ हरियाणा का श्राद्ध तीर्थ भी है इसलिय यहाँ तीर्थ यात्री खूब आते रहते हैं.