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जिन्हें इह लोक और परलोक दोनों में सुख की कामना हो उन्हें कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा में गौ पूजन करना चाहिए.  एक वर्ष में आने वाला यह एक अद्भुत दिन होता है और बेहद शुभ  दिन माना है इसलिए गो पूजन करना चाहिए ऐसा वैष्णव पुराण में वर्णन आया है. प्रातः काल शुद्ध होकर गोवर्धन की पूजा करे, यदि दूर रहते हैं तो गोवर्धन का घर पर ही निर्माण करे और उसका पूजन करे . उस समय गौओं को भली भांति विभूषित करना चाहिए और उनसे दूध नहीं लेना चाहिए. गाय का पूजन के समय निम्नलिखित श्लोको का वाचन करें यथा –

गोवर्धनधराधार गोकुलत्राणकरकं ।
विष्णुबाहु कृतोछराय गवां कोटिप्रदो भव ॥

या लक्ष्मिर्लोक पालानं  धेनुरूपेण संस्थिता !
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्योपहतु ॥

अग्रतः सन्तु में गावो गावो मम सन्तु पृष्ठतः ।
गावो में हृदयम सन्तु  गवां मध्ये वसाम्यहम् !!

पृथ्वी को धारण करने वाले गोवर्धन आप गोकुल की रक्षा करने वाले हैं . भगवान ने अपनी भुजाओ में आपको उठाया है . आप मुझे कोटि गोदान देने वाले हों ! लोकपालों की जो लक्ष्मी यहाँ धेनु रूप में विराजमान है  और यज्ञ के लिए घृत का भार वहन  करती है वह मेरे पापों को दूर करे . हैं मेरे आगे हों, गाये मेरे पीछे हों , गाये मेरे ह्रदय में निवास करे और मैं सदा गायों के मध्य में निवास करूँ.

इस प्रकार गो पूजन करके देवताओं, सत्पुरुषों, और लोगों को संतुष्ट करें.  ब्राह्मणों को यथेष्ठ दान दें. यह कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा तिथि वैष्णवी कही गयी है, इसमें किया गया पुण्य सहस्र गुना फल देने वाला होता है. प्रतिपदा और अमावस्या के योग में गौओ की क्रीड़ा उत्तम मानी  गयी है. इसदिन उन्हें भलीभांति  पूजन कर, सजाये और गाजे बजे आदि के साथ नगर से बाहर ले जाये. इस समय खूब शोर मचाएं. इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती है.