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भगवान शिव की गोमय लिंग बनाकर पूजा करने से सभी इच्छित कामनाएं पूर्ण की जा सकती हैं. शनि की खराब महादशा में ऋषियों द्वारा यह सर्वोत्तम उपाय बताया गया है. शुद्ध चित्त होकर साधकअपने घर पर ही या किसी गोशाला में गोमयलिंग का निर्माण किसी उत्तम मुहूर्त में करे.

इस विशेष पूजन के लिए चतुर्दशी की तिथियाँ श्रेष्ठ कही गयी हैं, विशेष रूप से कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी प्रशस्त है. शनिवार में भी शनि के लग्न में या शनि के नक्षत्रों में गोमय लिंग पर पूजन महान फल देने वाला होता है. गोमय लिंग स्थांपन के बाद वैदिक रीति  से  प्राण प्रतिष्ठा करके लिंग का विधिवत पूजन करें. रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करें, या शतरुद्रीय से अभिषेक करें.

शांति के लिए अभिषेक में पंचामृत का प्रयोग करें, स्त्री कामना के लिए गन्ने का रस से अभिषेक करें. दूध और दही से अभिषेक करने से  व्यक्ति निरोग हो जाता है. पंचामृत से दस गुना फल मिलता है. गोधूम चूर्ण से उबटन लगाकर शिव का कपिला गाय के दूध से अभिषेक करने से शिव प्रसन्न होते हैं . शिव को गूगल का धूप  प्रिय है इसलिए धूप गूगल का ही दें. गोघृत से दीपदान करें. 
गाय के दूध से बने नैवेद्य अर्पित करें. १००८ या १०८ विल्व पत्रों से नाम सहित शिव की भक्तिपूर्वक आराधना करें.

शास्त्रों के अनुसार  देवताओं के वैद्य धन्वन्तरि गोमय लिंग पर ही शिव का  “सर्वलोकेश्वर ” नाम से पूजन करते हैं. गोधूलि से बने लिंग पर शिव  का पूजन करने से भी महान सिद्धि प्राप्त होती है. महर्षि अगस्त्य गोधूलि से बने शिव लिंग पर उनकी “गोपति ” नाम से पूजा करते हैं . शेषनाग गोरोचन से बने शिव लिंग की “शंकर” नाम से उपासना करते हैं. महाराज पुरुरवा ने शिव की घृतमय लिंग बना कर “बहुरुप ” नाम  से  पूजन कर यश और राज्य पाया . स्वयं गौओं की अधिष्ठात्री सुरभि गाय शिव की “दुग्धमय” लिंग पर “नेत्रसहस्रक” नाम से पूजन करती हैं.