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क्यों चाहिए मुझे
मुर्दा होता जाता यह संसार?
माया का मूत्रपात्र,
आतुर वासनाओं का वेश्याघर,
यह चटखा घड़ा
यह टपकता हुआ तलघर?

अंगुली भले मसल डाले गूलर
उसे जाँचने को
जरूरी नहीं कोई खा भी ले उसे

शरण दो मुझे
मेरे दोष सहित
ओ मल्लिकार्जुन!

– अक्का महादेवी

अनुवाद द्वारा कवियित्री गगन गिल