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जितिया व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक तीन दिन लगातार मनाया जाता है. पूर्वी उत्तरप्रदेश में इसे जीउतिया कहते हैं. यह पुत्रों की दीर्घायु के लिए किया जाता है. इस व्रत को निर्जला रहकर किया जाता है. जितिया को जीमूतवाहन व्रत भी कहा जाता है. यह व्रत छठ की तरह ही नहाय खाय के किया जाता है. जितिया व्रत की शुरुआत सप्तमी तिथि से होती है और इसका समापन पारण के साथ नवमी तिथि के दिन किया जाता है. बिहार के कुछ इलाकों में इस व्रत में मछली खाते हैं और मरुआ (मडुआ) का भक्षण किया जाता है अर्थात मछली और मडुआ की रोटी को खाई जाती है. व्रत से एक दिन पूर्व यह सब किया जाता है.

जितिया अष्टमी व्रत को महालक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है. इसमें मड़वे की रोटी, दही, चूड़ा, चीनी और अन्य पकवान का प्रसाद को देवी देवताओं और अपने पूर्वजों को अर्पित किया जाता है. पारण में क्षेत्रवार परम्परा अलग अलग है. छठ के बाद यह इस तरह दूसरा सबसे बड़ा व्रत पर्व है.

जितिया का मुहूर्त –
दृक पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर को प्रातः काल 06 बजकर 34 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 7 अक्टूबर को सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार 6 अक्टूबर को जितिया व्रत मनेगा. जितिया व्रत का पारण 7 अक्टूबर 2023 को सुबह 08 बजकर 10 मिनट के बाद किया जायेगा.

जितिया की कथा –

यह कथा भीम और बकासुर की कथा की तरह ही है. भविष्य पुराण की इस कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में जीमूतवाहन नामक एक राजा राज्य करता था. उसकी ख्याति बहुत दूर दूर तक फैली हुई थी. वह अपनी प्रजा को खूब चाहता था और हमेशा उसके कल्याण के लिये प्रयासरत रहता था. एक बार वह शिकार करने के लिए मलयगिरि पर्वत पर गया. एक दिन जंगल में भटकते हुए उसे एक बुढ़िया विलाप करती हुई मिलती है. उसने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा, जिस पर उसने उसे बताया कि वह सांप (नागवंशी) के परिवार से है और उसका एक ही बेटा है. एक शपथ के रूप में, हर दिन, एक सांप को भोजन के रूप में पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और उस दिन उसके बेटे को गरुड का भोजन बनने का मौका मिला. उसकी समस्या सुनने के बाद, जीमूतवाहन ने उसे सांत्वना दिया और वादा किया कि वह अपने बेटे को जीवित वापस ले आएगा और गरुड़ से उसकी रक्षा करेगा. वह खुद को चारा के लिए गरुड़ को भेंट की जाने वाली चट्टानों के बिस्तर पर लेटने का फैसला करता है. गरुड़ आता है और अपनी अंगुलियों से लाल कपड़े से ढंके जीमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाता है. गरुड़ को आश्चर्य होता है जब वह जिस व्यक्ति को फंसाता है वह प्रतिक्रिया नहीं देता है. वह जीमूतवाहन से उसकी पहचान पूछता है जिस पर वह गरुड़ को कहानी का विस्तार से वर्णन करता है. गरुड़, जीमूतवाहन की वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर, सांपों से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा करता है. जीमूतवाहन की बहादुरी और उदारता के कारण, सांपों की दौड़ खत्म हो गई.
यह घटना आश्विन कृष्ण की अष्टमी तिथि को घटित हुई थी, इसलिये तभी से सभी महिलायें अपने पुत्रों की लंबी उम्र के लिये इस व्रत को रखने लगीं.