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सनातन धर्म के विवाद पर नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी उदयनिधि स्टालिन के बयान पर कहा कि, “सनातन ने महात्मा गांधी को अस्पृश्यता के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाने के लिए प्रेरित किया.” लेकिन ये नहीं बताया कि हिन्दू महासभा, सावरकर और बाद में RSS को सनातन ने क्यों नहीं प्रेरित किया ? आरएसएस मनुस्मृति के अनुसार धर्म और राजनीति की व्याख्या करती रही और बनियों का सन्गठन बन कर उनका हित साधन करती रही और आज भी कर रही है.

कांग्रेस ने 1920 में नागपुर अधिवेशन में अस्पृश्यता के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया था जिसमे कहा गया था कि, ‘हिंदू समाज की अगुवाई करने वालों से अपील है कि… वो हिंदू धर्म को अछूत प्रथा से निजात दिलाने के लिए विशेष तौर से प्रयास करें.’ इस प्रस्ताव में गांधी ने समाज के एक तबक़े को अछूत बनाने के पीछे पुरातन पंथियों को कठघरे में खड़ा किया था.

प्रचलित जातिगत भेदभाव की भयावह तस्वीर पेश करते हुए, वो प्रस्ताव इन शब्दों के साथ ख़त्म हुआ था कि कांग्रेस, ‘पूरे सम्मान के साथ धार्मिक गुरुओं से अपील करती है कि वो समाज के दबे कुचले वर्गों के साथ होने वाले बर्ताव में सुधार की बढ़ती ख़्वाहिश को पूरा करने में मदद करें.’

इस प्रस्ताव के खिलाफ हिंदुत्व ने अनेक प्रदर्शन किये थे. जब गांधी ने दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार देने के विधायी सुधार का समर्थन किया, तो उनकी मदन मोहन मालवीय से तीखी तकरार हुई थी. पहले कांग्रेस के नेता रह चुके मदन मोहन मालवीय ने हिंदुत्व ज्वाइन कर लिया था और उन्होंने इसका पुरजोर विरोध करते हुए 23 जनवरी 1933 को वाराणसी में ‘सनातन धर्म महासभा’ बुलाकर इस विधेयक के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया था..

-साभार बीबीसी