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हिमांचल प्रदेश के कुल्लू जिले में डेढ़हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक गाँव निरमांड में बेहद शक्तिशाली शक्तिपीठ स्थित है. इसका यह निरमांड नाम वास्तव में नृमुंड का अपभ्रंश है. यहाँ अम्बिका देवी का अतिप्राचीन मन्दिर स्थित है. यह मन्दिर महाभारत काल के किसी समय भगवान के छठे अवतार परशुराम ने स्थापित किया था. पौराणिक कथा के अनुसार परशुराम ने यहाँ शक्ति की घोर आराधना की थी और अम्बिका देवी की स्थापना की थी. इस स्थान पर परशुराम ने बहुत बड़ा यज्ञ किया था और उन्होंने यहाँ ब्राह्मणों को बसाया था. यह गाँव वैदिक काल से अस्तित्व में हैं. यहाँ पांचवीं छठवी शताब्दी के उत्कीर्ण पत्थर इसकी प्राचीनता के साक्षी हैं.

निरमांड शिमला से तिब्बत जाने वाले मार्ग पर 90 किलोमीटर दूर है. यहाँ जाने के रास्ते में सप्त पवित्र नदियों में एक सतलज का भी दिव्य दर्शन होता है. यह गाँव हिमांचल का दूसरा सबसे बड़ा गाँव है. अम्बिका देवी मन्दिर एक अनोखा मन्दिर हैं. इस मन्दिर की छत ताम्बें की मोटी चादर की बनी हुई है.

मन्दिर पहाड़ी स्टाईल में बना हुआ है और भीतर काष्ठ सुंदर पौराणिक कथाएं और देवी देवताओं की मूर्तियाँ बनी हुई हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि यह कोई तांत्रिक मन्दिर था. परशुराम तन्त्र के सबसे बड़े गुरुओं में एक माने जाते हैं और शक्ति उपासकों के श्रीविद्या सम्प्रदाय में तो वे सबसे श्रेष्ठ गुरुओं में एक हैं. उनके द्वारा किया गया उपदेश परशुराम कल्प में सुरक्षित है.

निरमांड की अम्बिका देवी की मूर्ति द्विभुज है. यहाँ ईशेश्वर महादेव या दक्षिणी महादेव, चण्डी देवी मन्दिर और समीप ही गुफा में चांदी निर्मित श्री परशुराम की भव्य मूर्ति है. उन्हें ‘कालकाम’ परशुराम कहा जाता है. यहाँ महाभारत कालीन हिडिम्बा का भी एक मन्दिर है जिसकी मूर्ति बड़ी भयंकर है.

निरमांड से थोड़ी दूर पर ही मार्कण्डेय मुनि का आश्रम स्थित है. मन्दिर आने वाले यहाँ भी दर्शन करने आते हैं. इस गाँव के दो किलोमीटर की दूरी पर एक अँधेरी गुफा में शिव लिंग स्थित है जिस पर स्वत: ही जल गिरता रहता है और अभिषेक होता रहता हैं. शिवरात्रि पर यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है .