हरएक देवता की पूजा में कोई विशेष चीज चढ़ती है जो उनको प्रिय होती है और उस देवता से विशेष रूप से जुड़ी होती है. शिव जी को बेलपत्र, विष्णु जी को तुलसी, दुर्गा जी को जवाकुसुम, इसी तरह गणेश जी की पूजा में दूर्वा चढ़ाने की परम्परा है. गणेश जी का दूर्वा से क्या सम्बन्ध है? इसको लेकर एक पौराणिक कथा है. माना जाता है कि किसी काल में अनलासुर नाम के एक असुर ने पृथ्वी लोक में हाहाकार मचा रखा था. उसके अत्याचारों से मनुष्य, ऋषि और देवता सभी परेशान थे. अनलासुर के अत्याचारों से मुक्ति के लिए एक दिन सभी परेशान देवता भगवान गणेश के पास गए और उन्होंने अनलासुर से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना की. देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान गणपति अनलासुर को उसके कर्मों का दंड देने निकल पड़े. उनका अनलासुर से भयंकर युद्ध हुआ, इस युद्ध को खत्म करने के लिए गणेश जी ने उस असुर को जिंदा ही निगल लिया.
अनलासुर जैसा नाम से ही स्पष्ट है अग्निमय था. उसे गणपित बप्पा ने निगल तो लिया, लेकिन उनके पेट में बड़ी पीड़ा और जलन होने लगी. उनके कष्ट को देख देवता चिंतित हुए. उनको जलन से राहत देने के लिए ऋषि कश्यप ने 21 दूर्वा की गांठ बनाकर भगवान गणेश को खाने के लिए दिया.. दूर्वा खाने के बाद भगवान गणेश के पेट की पीड़ा और जलन शांत हो गई.
तभी से उनकी पूजा के समय 21 दूर्वा की गांठ अर्पित की जाने लगी. ऐसा करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और भक्तों की कामनाओं को पूर्ण करते हैं. भगवान को चढ़ाई जाने वाली दूर्वा शुद्ध स्थान से लेना चाहिए. उसे धोकर गंगाजल से अभिषिक्त कर लेना चाहिए. भगवान गणेश को सदैव दूर्वा घास के 21 जोड़े चढ़ाने चाहिए. दूर्वा अर्पण करते समय यह मन्त्र कहना चाहिए –
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि।
एवा नो दूर्वे प्रतनुसहश्रेण शतेन च।।
दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान्।
आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक !।।
ॐ गं गणपतये नम: दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि।
गनेश जी की पूजा बुध ग्रह के दोष निवारण के लिये भी किया जाता है. बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है. दूर्वा हरे रंग की होती है जो बुध का रंग है. बुधवार के दिन गणेश की पूजा सिर्फ दूर्वा से करने पर भी बुध के दोष खत्म होते हैं.

