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ज्योतिष में पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहा जाता है. ये पांच नक्षत्र कुम्भ और मीन राशि के धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती हैं. सिद्धांत की दृष्टि से साढ़े चार नक्षत्र होते हैं क्योकिं धनिष्ठा का आधा मकर में पड़ता है. इन नक्षत्रों के संयोग से पंचक नक्षत्र बनता है. चंद्रमा एक राशि में ढाई दिन रहता है अत: दो राशियों में चंद्रमा पांच दिन बिताता है. इन पांच दिनों के दौरान चंद्रमा, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती को ट्रांजिट करता है और इस कारण ये पांचों दिन पंचक कहे जाते हैं. जब चंद्रमा 27 दिनों में सभी नक्षत्रों का भोग कर लेता है तब प्रत्येक महीने में लगभग 27 दिनों के अंतराल पर पंचक नक्षत्र का चक्र बनता रहता है.

पंचक के समय कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है. ज्योतिष ग्रन्थ में में बताया गया है कि सभी कार्य निषिद्ध नहीं हैं. ये पंचक नक्षत्र अशुभ माने गये हैं. गर्गाचार्य #gargastro का कहना है कि पंचक काल में कोई कार्य हो तो पांच बार उसकी आवृत्ति होती है. विवाह, मुंडन, घर की छत डालना, शव’दाह, अग्नि संचय जैसे मंगल कार्यों को पंचक में करने की मनाही है.

पंचक नक्षत्र और इनके प्रभाव:

रत्नमाला के अनुसार –
वासवोत्तर दलादिपंचके याम्यदिग्गमनगेहगोपनम ।
प्रेत’दाहतृणकष्ठसंग्रहं शय्याकावितननं च वर्जयेत।।
1. धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है. यदपि की अन्यत्र इसे जल से सम्बन्धित भी बताया गया है. इस काल में अग्नि से उत्पन्न किसी दुर्घटना की आंशका बनी रहती है.

2. शतभिषा नक्षत्र में कलह-क्लेश और शारीरिक कष्ट होने की सम्भावना रहती है.

3. पूर्वाभाद्रपद में रोग का योग रहता है.

4. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जुर्माना या किसी शुल्क के भुगतान का योग बनता है.

5. रेवती नक्षत्र में धनहानि होता है. इस काल में धन से सम्बन्धित कार्य करने से धन संबंधित परेशानी से गुजरना पड़ सकता है.

पंचक काल के समय क्या करें और क्या ना करें

1. पंचक काल के समय गृह प्रवेश,  उपनयन संस्कार, भूमि पूजन, रक्षाबंधन और भाई दूज मनाया जा सकता है.

2. पंचक काल के समय शादी, मुंडन, शवदाह, स्तम्भ निर्माण और नामकरण संस्कार वर्जित हैं. यदि शवदाह आवश्यक हो तब चार पुतले कुशा नया आटे का बना कर साथ शवदाह करना चाहिए.