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भारतीय ज्योतिष में पाताल या हिबुक जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव को कहते हैं। पाताल यक्ष राज कुबेर की दिशा है। यह राक्षसों की भी दिशा है। आध्यात्म में पाताल वस्ति के नीचे का हिस्सा है। चतुर्थ यह उत्तर दिशा और अर्धरात्रि है जबकि सप्तम सायं है जहाँ सूर्य अस्त हो जाता है। चतुर्थ भाव में कुछ ग्रह ही बली होते हैं -जैसे चन्द्रमा, शनि और शुक्र। सप्तम में कीट राशि को बली माना गया है। चतुर्थ चन्द्रमा का नैसर्गिक हॉउस है इसलिए चन्द्रमा यहाँ दिग्बली होता है ।
विलग्नपातालवधूनभोगा बुधामरेज्यौ भृगुसूनुचन्द्रौ।
मन्दो धरासूनुदिवाकरौ चेत क्रमेण ते दिगबलशालिन: ।। अर्थात बुध और गुरु लग्न में बली होते हैं, सप्तम में सर्वथा बलहीन होते हैं। चन्द्रमा और शुक्र चतुर्थ में पूर्ण बली होते हैं और दशम में बलहीन होते हैं। शनि सप्तम में पूर्ण दिग्बली होता है, लग्न में निर्बल होता है।
जहाँ चन्द्रमा बली होता वहां सूर्य स्वभाविक रूप से बलहीन होता है। इस हाउस में ज्यादातर जल प्रधान राशियाँ -कर्क, मीन, मकर उत्तरार्ध ही बली होती हैं। चतुर्थ हॉउस केंद्र का भाव है इसलिए यहाँ निम्नलिखित जन्म के अनुसार राशियों का बल होता है- १- दिन में जन्म हो तो द्विपाद राशियाँ केंद्र में बली होती हैं ( मिथुन, कन्या, तुला, धनी पूर्वार्ध तथा कुम्भ ) २- रात्रि में जन्म हो तो चतुष्पाद राशियाँ ( मेष, वृष, सिंह, धनु का उत्तरार्ध और मकर का उत्तरार्ध बली होती है ३- सायं का जन्म हो तो केंद्र में कीट राशि( वृश्चिक, कर्क को कीट कहा गया है ) बली होती हैं । जिस भाव में रात्रि को बलवान होने वाले ग्रह – शनि बली हो , चन्द्रमा बली हो और शुक्र बली हो, उस भाव में सूर्य निःसंदेह बलहीन होता है।

सूर्य की उच्च राशि मेष है जहाँ यह 10 अंश पर परम उच्च अवस्था को प्राप्त करता है। सूर्य उत्तरायण में बली होता है, मेष सूर्य की उत्तरायण की राशि है । सूर्य तुला में 10 अंश पर परम नीच अवस्था को प्राप्त करता है। तुला दक्षिणायन की राशि है, यह दक्षिणायन के स्वामी चन्द्रमा की कर्क लग्न के चतुर्थ भाव में पडती है। तुला में दस अंश पर नीचाख्य पाताल योग का निर्माण होता है। इस योग में मारण इत्यादि कर्म सिद्ध होते है। परम नीच अवस्था में आत्मकारक बलहीन होता है इसलिए इस योग में प्राण हरण किया जा सकता है। जिसकी कुंडली में सूर्य जब परमोच्च अवस्था में होता है तो उसकी दशा सम्पूर्णा होती है अर्थात यह पूर्ण शुभकारी दशा होती है। नीचाख्य पाताल योग की स्थिति में उसकी दशा अति निकृष्ट होती है (धन-सम्पत्ति का नाश, पितृनाश, आखों की रौशनी का नाश, पुत्र नाश, कलह, अपमान इत्यादि होते हैं )  साथ ही यह कुंडली को कमजोर कर देता है। यहाँ तक कि यदि नवांश में तुला का सूर्य हो तो जातक को निर्धन करता है। आत्मा और मन परस्पर एक दूसरे पर आश्रित होते हैं -सूर्य अति नीच अवस्था में हो तो मन का कारक चन्द्रमा भी कमजोर हो जाता है भले ही वो दिग्बली हो, सूर्य नीच हो तो सभी ग्रह निर्बल हो जाते हैं। जातक के स्वास्थ्य को गहरे प्रभावित करता है और आयु को भी कम कर देता है। ग्रहों की महादशाओं में उनके शुभाशुभ फल पर गहरा प्रभाव बलहीन सूर्य का पड़ता है , कहा भी है – पाकेशरूहेशस्य दशाफलानां द्विजाधिराज: खलु बोधकर्ता । सूर्य की दशा फल की उत्प्रेरक होती है। सूर्य और चन्द्रमा के वशीभूत ही अन्य ग्रह शुभाशुभ फल प्रदान करते है।

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