कुम्भकोणम का मरुन्डीश्वरर मन्दिर चेन्नई के पास स्थित है. सातवीं-आठवीं शताब्दी में तमिल शैव संतों के अराध्य देव रहे हैं मरुन्डीश्वर महादेव . चोल राजाओं ने इस मन्दिर को 11 शताब्दी में अपने अधीन किया और जोर शोर इसका विकास किया . यह कुरुवर, थिरुगनन साम्बन्थार,अप्पार, सुंदरमूर्ति नयनार जैसे संतों की भूमि रही है. मरुन्डीश्वर की ख्याति रोगनिवारक देवता के रूप में दक्षिण भारत में है . उड़ीसा इत्यादि राज्यों से भी भक्त रोग निवारणार्थ इस मन्दिर में आते रहते हैं. मरुन्डीश्वर महादेव ने इसी जगह ऋषि अगस्त्य को आयुर्वेद के रहस्यमय जड़ी बूटियों और औषधियों का ज्ञान प्रदान किया था. प्राचीन काल से ही मरुन्डीश्वर महादेव की रोग निवारण के लिए पूजा होती आ रही है .

मन्दिर से जुडी कथाओं के अनुसार महर्षि बाल्मीकि ने भी इस मन्दिर में शिव की उपासना की थी और उनसे वर प्राप्त किया था. इसलिए इस मन्दिर का नाम थिरुवाल्मीकियूर भी है. इंद्र के शाप से मुक्ति के लिए हनुमान ने भी इस शिव लिंग की उपासना की थी. भारद्वाज और मार्कंडेय ऋषियों ने भी इस स्थल की यात्रा की थी और शिव की उपासना की थी. जैसा की मैंने पहले बताया था ये मन्दिर दक्षिण में पांचवीं शताब्दी के ज्योतिष के उत्थान काल में बने थे और बाद में इसका पौराणिकीकरण किया गया.
मरुन्डीश्वर महादेव की पूजा अश्विनी नक्षत्र के जातकों के लिए अति लाभप्रद है क्योकि इन जातकों के लिए मंगल मारक होते हैं. अश्विनी नक्षत्र के सभी चार चरण मेष राशि में ही स्थित होते हैं जिसके कारण मेष राशि तथा इस राशि के स्वामी मंगल का भी इस नक्षत्र पर प्रभाव रहता है तथा मेष राशि एवम मंगल ग्रह की कई विशेषताएं इस नक्षत्र के माध्यम से साकार होती हैं. मंगल ग्रह के प्रभाव के चलते अश्विनी नक्षत्र के जातकों को इससे सम्बधित रोग लाजमी ही है. अश्विनी नक्षत्र के जातक रोग निवारण के लिए मरुन्डीश्वर महादेव की पूजा करें.

