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जन्म कुंडली में गुरु (बृहस्पति) को जीव कहा गया है. बृहस्पति सन्तान, धन और आयु का कारक है. कुंडली में गुरु की स्थिति से स्वास्थ्य, धन, धर्म, बुद्धिमत्ता, ज्ञान, बड़े भाई से सम्बन्ध, संतान, शिक्षा, चिंतन, सम्मान और प्रतिष्ठा, योग्यता, सद्गुण, सच्चाई, नैतिकता, आचार, प्रगति आदि से सम्बन्धित मामले का ज्ञान होता है. ज्योतिष के अनुसार नीच का बृहस्पति अक्सर विपरीत परिणाम देता है.

नीच बृहस्पति की महादशा में गृह का नाश, परस्पर शत्रु भाव, कृषि का नाश, धर्म-धन का नाश, पतन, सम्मान और प्रतिष्ठा का खोना, गुरु विरोध तथा सन्तान को कष्ट है. ऐसा भी कहा गया है कि जातक दूसरों का दास होता है. नीच गुरु कुंडली में हो तो धन, कानूनी विवाद और प्रजनन से सम्बंधित समस्याएं जीवन भर परेशान कर सकती हैं. अति नीच बृहस्पति से नीच कर्म में रूचि, बुद्धिहीनता, क्षय रोग, मोटापा, दन्त रोग, धनहीनता, पुत्र विहीनता, कमर और पेट सम्बंधित रोग भी प्रभावित कर सकते हैं. नीच गुरु से कुटुम्बियों से वियोग होता है. नीच का बृहस्पति या पापान्वित बृहस्पति के बुरे प्रभावों को कम करने के लिए रत्न उतना प्रभावी नहीं होते, शांति अनुष्ठान ही बेहतर उपाय होता है.

बृहस्पति के कारण उत्पन्न समस्त अरिष्टों के शमन के लिए “रुद्राष्टाध्यायी” का पाठ अथवा नियमित “रुद्राभिषेक“ करना लाभप्रद होता है. “वैदिक बृहस्पति शांति अनुष्ठान” करने से सभी अरिष्टों का शमन होता है. नित्य बृहस्पति पूजन और ध्यान से त्रि-तापों से निवृत्ति मिलती है. कुछ विद्वानों के अनुसार पुरुष सूक्त का जप एवं हवन एवं “सुदर्शन होम” विशेष कल्याणकारी होता है.
निम्नलिखित उपाय भी काफी कारगर होते हैं –
1- बृहस्पतिवार तथा एकादशी का व्रत नियमित रखने से गुरु दोष कम होता है. कमसे कम 21 बृहस्पतिवार के व्रत रखें.
2- राहु, मंगल आदि क्रूर एवं पाप ग्रहों से पापान्वित बृहस्पति से हो रही संतान बाधा में शतचंडी अथवा हरिवंश पुराण एवं “संतान गोपाल मंत्र” का अनुष्ठान बताया जाता है.
3-शिक्षकों और अपने से बड़े बुजुर्गों का सम्मान, किताबों का दान, सदाचरण, फलदार वृक्ष लगवाने एवं फलों के दान से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं.
4-पंचम भाव स्थित शनि-बृहस्पति के अरिष्टनाशनार्थ 40 दिन तक वट वृक्ष की प्रदक्षिणा करना बहुत हितकर होता है.
5-विवाह में विलम्ब या बाधा होने पर उत्तम पुखराज धारण करना चाहिए. केले या पीपल के वृक्ष का पूजन लाभकारी माना जाता है.
6- विशेष रूप से किसी अच्छे श्रेष्ठ विद्वान् ब्राह्मण की सेवा, दान करना, बृहस्पतिवार भोजन पर घर आमंत्रित करना और भोजन के बाद सम्मान पूर्वक दक्षिणा, वस्त्रादि देकर विदा करना बहुत प्रभावी होता है.
7-सत्यनारायण भगवान की कथा महीने के अंतिम बृहस्पतिवार घर पर करवाने से बृहस्पति दोष का निवारण होता है. कथा में पति-पत्नी का साथ बैठकर संकल्प पूर्वक पूजन करें और कथा सुने. कथा के अंत में 5 ब्राह्मण खिलाएं और दक्षिणा प्रदान करें.

बृहस्पति का वैदिक मंत्र :
ऊँ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेधु ।
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविण देहि चित्रम । ।
गुरु के लिए तांत्रोक्त मंत्र

  • ऊँ ऎं क्रीं बृहस्पतये नम: ।
  • ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम: ।
  • ऊँ श्रीं श्रीं गुरवे नम: ।

गुरु के लिए नाममंत्र
ऊँ बृं बृहस्पतये नम:

गुरु के लिए पौराणिक मंत्र
ऊँ देवानां च ऋषीणां गुरुं कांचनसन्निभम ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम ।।

कुछ अन्य उपाय –
– बृहस्पतिवार को पीली वस्तुओं का दान करें.
-भगवान् विष्णु को नमस्कार करना चाहिए.
-शुद्ध सोना धारण करें.
-नाभि पर केसर लगाएं, केसर का तिलक करें.
-पीले रंग का अधिक से अधिक उपयोग करें.

यदि बृहस्पति नीच राशि में है या दूषित है तो इसका तात्पर्य यह है कि पूर्व जन्म में जातक ने फलदार वृक्षों को कटवाया है, कुल देवता या किसी आदरणीय व्यक्ति या गुरु या ब्राह्मण का अपमान किया है. ब्राह्मण, गुरु या पितर का शाप के फलस्वरूप जातक को संतान सुख नहीं मिलता. .

 

 बृहस्पति देवता की आरती

जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।
छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥

जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥