पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक मूलभूत रूप से धार्मिक और प्रेमी स्वभाव के होते हैं . इनका स्वभाव सात्विक माना जाता है , ये न्याय प्रिय और अनुशासन प्रिय होते हैं . इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं . पुनर्वसु श्री राम का जन्म नक्षत्र था. दक्षिण भारत में पुनर्वसु नक्षत्र का मन्दिर चेन्नई से 140 किलोमीटर दूर वेल्लोर के वाणीम्बाडी ( Vanayambadi) में स्थित है. इस मन्दिर में दक्षिणामूर्ति शिव नंदी के ऊपर बैठे हैं, उनके हाथों में हिरन है , एक हाथ में चिन्मुद्रा में कुल्हाड़ी लिए हुए हैं.
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक द्क्षिणामूर्ती शिव का दर्शन कर स्वयम्भू श्री अबथसहयेश्वरर ( Sri Abathsahayeswarar ) लिंगम का दर्शन करते हैं. अबथसहयेश्वरर का अर्थ है जहाँ देवताओं को विष के ताप से मुक्ति मिली . यह भगवान बृहस्पति का बड़ा ही पवित्र मन्दिर माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने इसी जगह पर समुद्र मंथन से निकले विष का पान किया था. स्थल का नाम भी अलान्गुडी इसीलिए पड़ा . यहाँ बृहस्पतिवार और गुरुपूर्णिमा या किसी गुरु पर्व पर पुनर्वसु नक्षत्र के जातक दूर दूर से दर्शन के लिए आते हैं. गणेश , कार्तिकेय सहित मां सरस्वती का भी दिव्य विग्रह है.

यह मन्दिर कावेरी नदी के किनारे पर स्थित है. इस मंदिर के इदगिर्द 15 सरोवर हैं जिन्हें शिव तीर्थ कहा जाता है. इनमे से एक सरोवर अमृत पुष्करिणी है जिसके बारे में कहा जाता है कि मां पार्वती का यहाँ पुनर्जन्म हुआ था और यहीं उन्होंने शिव से एकत्व प्राप्त किया था. इन मन्दिरों की स्थापना मध्य युग के एक काल खंड में हुई जब दक्षिण भारत में ज्योतिष अपने उत्कर्ष पर पहुंचा. इस प्रक्रिया में न केवल 27 नक्षत्रों के मन्दिर स्थापित हुए बल्कि नदियों के पुष्कर मेलों का भी आयोजन प्रारम्भ हुआ.

