भागवत महापुराण में राधा नाम का जिक्र नहीं है। कृष्ण और एक गोपियों के यूथ की नायिका गोपी के प्रेम का जिक्र है जिन्हें राधा के रूप में पहचाना जाता है। भागवत के बड़े पंडितों के अनुसार वेदव्यास ने राधा के बारे में गुप्त रीति से वर्णन किया है। किसी भी साहित्य में पात्र का नाम दो प्रकार से निरुपित होता है अभिधा से व व्यंजना से। अभिधा से व्यंजना को उत्कृष्ट माना गया है, श्रेष्ठ माना गया है। अभिधा अर्थात् सीधे-सीधे नाम लेना और व्यंजना अर्थात् इशारे से कहना। भागवत में एक प्रसंग है जिसमे रासलीला के समय श्री कृष्ण एक गोपी को लेकर गायब हो गये थे – यांगोपीमनयत्कृष्णोविहायान्याःस्त्रियोवने । यह प्रमुख गोपी ही राधा हैं।
भागवत में ही कृष्ण के पर्यायवाची शब्द रमेश का व्यास देव ने प्रयोग किया हैं जिसका अर्थ रमा अर्थात लक्ष्मी के पति हैं।
रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिः
यथार्भकः स्वप्रतिबिम्बविभ्रमः
–भागवत : 10-33-17
राधोपनिषद् में श्री राधा के 28 नाम गिनाये गए हैं। उनमें श्री, रमा , गोपी इत्यादि नाम आये हैं। अन्य पुराणों में भी राधा को रमा और लक्ष्मी ही कहा गया है। भागवतं में महारास के प्रारम्भ में ही वेदव्यास ने लिखा है –वीक्ष्यरन्तुंमनश्चक्रेयोगमायामुपाश्रितः अर्थात अपनी योगमाया को मनश्चक्र में धारण कर भगवान ने महारास का प्रारम्भ किया। यह योगमाया ही राधा कही गई हैं। वेदव्यास द्वारा कही भागवत की कथा को शुकदेव ने पहली बार नैमिषारण्य में परीक्षित को सुनाया था। ऐसा भागवतमर्मज्ञ कहते हैं कि शुकदेव को राधा नाम सुनते ही समाधि लग जाती थी। वेदव्यास ने राधा नाम आवश्य लिखा होगा लेकिन शुकदेव ने कथा कहते समय इसे गुप्त कर दिया। यह कथा सात दिन में ही सम्पन्न होनी थी, समाधि लग जाने से कथा भंग न हो इसलिए शुकदेव ने व्यंजना द्वारा ही राधा का वर्णन किया और मृत्यु से भयभीत परीक्षित का उद्धार किया। शुकदेव के मुख से निकली कथा ही ग्रन्थाकार है।
कृष्ण की शादी राधा से हुई थी इसका भी कोई जिक्र भागवत महापुराण में नहीं है। गर्ग संहिता में राधा और कृष्ण के ब्याह का प्रसंग कुछ इस प्रकार से है –
एक दिन नन्द बाबा नन्हें कृष्ण को गोदी में लिए गौओं को चराने निकल पड़े। गौओं को चराते चराते और बालक कृष्ण को गोद में खेलाते हुए वे बहुत दूर कालिंदी तट के पास स्थित भंडरी वन में पहुंच गये। कृष्ण की माया से उसी समय बड़ी अंधी चली, पूरा आकाश काले बादलों से भर गया, चारो तरफ अंधकार छा गया। यह देख नन्द बाबा भयभीत हो भगवान की शरण में गये। उसी समय स्वर्णिम प्रकाश की कौंध के बीच उनके समक्ष राधा जी अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हुईं। चन्द्रमा जैसी कांति, अद्भुत रूप और श्रृंगार।
इनके दिव्य स्वरूप को देख नन्द जी ने उन्हें प्रणाम किया और बोले – ये मेरी गोद में साक्षात् पुराण पुरुष हैं और हे राधे ! आप इनकी परम प्रियतमा हो. यह आपका गुप्त स्वरूप या तो मैं जानता हूँ या आप। मुझे इस समय बड़ा भय हो रहा है, आप से प्रार्थना है – आप मायाशक्ति से इन्हें घर पहुंचा दीजिये। आप प्राणीमात्र के लिए अलभ्या हैं, आप ही ईश्वरी हैं। श्री राधा ने नन्द बाबा को आशीर्वाद दिया और बोलीं- हे नन्द ! तुम्हारी सेवा से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। इस लोक में तुम्हारी समस्त कामनाएं पूर्ण होंगी और तुम गोलोक में हमारा सायुज्य प्राप्त करोगे।

