शनि का वैदिक मन्त्र, बीज मन्त्र और जप के लिए अन्य मन्त्र भी दिए जा रहे हैं. वैदिक मन्त्र का जप सबके लिए नहीं है क्योंकि सभी वैदिक मन्त्र स्पष्ट सस्वर उच्चारण नहीं कर सकते हैं. यह कठनाई देख कर ही बीज मन्त्र और पौराणिक मन्त्र बने. मन्त्रों का विधि पूर्वक जप न करने से विपरीत परिणाम ही प्राप्त होते हैं. शास्त्रों में बताया गया है कि दशानन रावण का विनाश अंगविहीन दुर्गा शप्तशती के पाठ करने से हुआ था. यदि मन्त्र विधिपूर्वक नहीं जपा जाता है तो वह मारक बन कर जप करने वाले का नाश कर देता है. इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
शनि का वैदिक मन्त्र –
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः ॐभूर्भुव स्व: ॐ शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्रवन्तु नः। ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: प्रौं प्रीं प्रां ॐ शनैश्चराय नम:
सूक्त –
ओं शन्नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ आपो॑ भवन्तु पी॒तये᳚ । शम्योर॒भिस्र॑वन्तु नः ॥
प्रजा॑पते॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ जा॒तानि॒ परि॒ता ब॑भूव ।
यत्का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ अस्तु व॒यग्ग्स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥
इ॒मं य॑मप्रस्त॒रमाहि सीदाऽङ्गि॑रोभिः पि॒तृभि॑स्संविदा॒नः ।
आत्वा॒ मन्त्रा᳚: कविश॒स्ता व॑हन्त्वे॒ना रा॑जन् ह॒विषा॑ मादयस्व ॥
ओं अधिदेवता प्रत्यधिदेवता सहिताय शनैश्च॑राय॒ नम॑: ॥
अथ विनियोग :
ॐ शन्नो देवीति मन्त्रस्य, सिन्धुद्वीप ऋषि: , गायत्री छन्दः, आपो देवता, शनी प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:
अंगन्यास:-
शन्नो शिरसि (सिर) । देवी: लालटे (माथा) । अभीष्टय: मुखे (मुख) । आपो कंठे (कंठ) । भवन्तु हृदये (ह्रदय) । पीतये नाभौ (नाभि) । शं कट्याम् (कमर ) । यो: उर्वो: (छाती) । अभि जान्वो: (घुटने ) । स्रवन्तु गुल्फयो (गुल्फ) । न: पादयो: (पैर) ।
अथ करन्यास:
शन्नो देवी अंगुष्ठाभ्यां नम: । अभीष्टये तर्जनीभ्याम नमः । आपो मध्यमाभ्याम नमः। पीतये अनामिकाभ्याम नमः। शय्योरभि कनिष्ठिकाभ्यां नमः। स्रवन्तु न: करतलकर पृष्ठाभ्याम नमः ।
अथ हृदयादि न्यास:-
शन्नो देवी हृदयाय नम: । अभीष्टये शिरसे स्वाहा । आपो शिखायै वषट्। पीतये कवचाय हुम् । शय्योरभि नेत्रत्र्याय वौषट्। स्रवन्तु न अस्त्राय फट् ।
ध्यानम् :
नीलाम्बर शूलधरः किरीटी गृघ्रस्थितस्त्रसकरो धनुष्मान्।
चर्तुभुजः सूर्यसुतः प्रशान्त: सदाऽस्तुं मह्यं वरंदोऽल्पगामी ।।
जो नीलवस्त्र धारण करने वाले हैं, जिनके हाथ में शूल और धनुष है, मुकुट पहने हुए गिद्ध पर आसीन हैं, जिनका चतुर्भुज रूप है वे धीरे चलने सूर्य पुत्र हम पर प्रसन्न हों और वर प्रदान करें ।
शनि गायत्री:
ॐ कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात्
बीज मन्त्र :
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः ॐभूर्भुव स्व: ॐ शन्नो देवीरभिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्रवन्तु नः। ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: प्रौं प्रीं प्रां ॐ शनैश्चराय नम: ।
जप मन्त्र : ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नम:
पौराणिक श्लोक मन्त्र –
श्री नीलान्जन समाभासं ,रवि पुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम ।
शनि के तांत्रिक मन्त्र- ॐ शं शनैश्चरायै नम:
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
१९००० प्रतिदिन या उपरोक्त वैदिक मन्त्र के साथ सम्पुटित बीज मन्त्र या शनि गायत्री या ॐ शं शनैश्चराय नम: का जप करें. जप का दशांश हवन करना चाहिए लेकिन शहर में इतना हवन बहुत कठिन है. ऐसे में शास्त्र के अनुसार जप संख्या का दोगुना जप करके इसकी पूर्ति का विधान है. प्राचीन समय में बड़े बड़े साधक और ऋषि जंगलों में रहकर गायत्री इत्यादि का जप करते थे. जंगल में यज्ञ की सामग्री प्राप्त नहीं हो सकती और ऋषि कंदमूल खा कर रहते थे. उनके पास सिर्फ कमंडल का जल और जगंली पुष्प ही मात्र सामग्री थे. सारी पूजा वो मानसिक सम्पन्न करते थे और जल से संकल्प लेकर साधना में लगे रहते थे. दुगुना जप हवन से श्रेष्ठ माना गया है.

