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यदि जन्म नक्षत्र या लग्न नक्षत्र पीड़ित हो तो जातक को जीवन भर कष्ट प्राप्त होता है। शुक्र पीड़ित हो तो जातक का वैवाहिक जीवन तथा सुख खराब होता है, बुध पीड़ित हो जातक अनेक व्याधियों से घिर जाता है। जातक का जन्म नक्षत्र और उसके स्वामी पीड़ित नहीं होने चाहिए।
यस्य नरस्य हि जन्मनि धिष्ण्ये क्रूरैर्निपीडी़ते खेचरै:।।
अतिदु:खामयशोकं भयं प्रवास: शत्रोर्भयं भवति ।।
यदि विशेष शुभ नक्षत्रों को कोई क्रूर ग्रह पीड़ित करे तो अशुभ फल की प्राप्ति होती है। यदि चन्द्र नक्षत्र को कोई ग्रह पीड़ित करे कष्ट, रोग और दुर्भाग्य की प्राप्ति होती है।
आचार्य वराहमिहिर अनुसार निम्न परिस्थियों में नक्षत्र को पीड़ित माना जाता है। (१) शनि व सूर्य तथा केतु जिसमे गोचर करे। (२) मंगल जिस नक्षत्र मे वक्री हो या उसका भेदन करे। (३) जिस नक्षत्र मे ग्रहण हो। (४) जिसमे उल्का से टक्कर हो। (५) जो स्वाभाविक रूप से भिन्न हो अथवा चन्द्रमा भेदन करे।
इसके इतर भी चन्द्रमा के पीड़ित होने की कई स्थितियां होती हैं मसलन चन्द्रमा का क्रूर ग्रहों के मध्य स्थित होना, चन्द्रमा का दु:स्थान 6, 8 अथवा 12 में स्थित होना, अशुभ भाव के स्वामी से युत या दृष्ट होना, खराब नक्षत्र में स्थित होना इत्यादि। चन्द्र का अष्टम होना बहुत अशुभ होता है। चन्द्रमा और लग्न दोनों से ही 4, 7, 8, 12 में कोई भी क्रूर ग्रह अशुभ होता है। क्रूर ग्रहों में चार ग्रह मंगल, शनि, राहु और केतु गिने जाते हैं।

निम्नलिखित दिशाओं में चन्द्रमा शुभ-अशुभ होता है –

मेष सिंह धनु पूरब चन्द्र दक्षिण कन्या वृष मकरंद ।
घट तुल मिथुन पश्चिमाधीन उत्तर कर्कट वृश्चिक मीन ।
जब चन्द्रमा मेष, सिंह, धनु राशि में हो तो उसे पूर्व दिशा में समझो, दक्षिण में समझो जब कन्या, वृष और मकर में हो, कुम्भ तुला मिथुन राशि में हो तो पश्चिम समझो, उत्तर में समझो जब कर्क, वृश्चिक, मीन में हो । कन्या, कुम्भ, मकर का चन्द्रमा भयानक अशुभ होता है । मेष, सिंह और धनु का चन्द्र लाल रंग का होता है युद्ध कारक होता है । ये झगडालू होते है ।

तस्य द‍ृग्भ्योऽभवत् पुत्र: सोमोऽमृतमय: किल ।
विप्रौषध्युडुगणानां ब्रह्मणा कल्पित: पति: ॥
अपनी अमृतमय किरणों के साथ अत्रि के चक्षु से सोम का जन्म हुआ। ब्रह्मा जी ने उन्हें औषधियों, ब्राह्मणों और नक्षत्रों का स्वामी बनाया।

-श्रीमदभागवतं