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नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च ।
मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ॥ १॥

कल्याण एवं सुखके मूल स्रोत भगवान शिवको नमस्कार है ।
कल्याणके विस्तार करनेवाले तथा सुखके विस्तार करनेवाले भगवान
शिवको नमस्कार है । मंगलस्वरूप और मंगलमयताकी सीमा
भगवान शिवको नमस्कार है । १

ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां
ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम् ॥ २॥

जो सम्पूर्ण विद्याओंके ईश्वर, समस्त भूतोंके अधीश्वर,
वेदके अधिपति, ब्राह्मणों के अधिपति, ब्रह्म-बल-वीर्यके प्रतिपालक तथा
साक्षात् ब्रह्मा एवं परमात्मा हैं, वे सच्चिदानन्दमय शिव मेरे
लिये नित्य कल्याणस्वरूप बने रहें । २

तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि ।
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥ ३॥

तत् शब्द से वाच्य परमेश्वररूप अन्तर्यामी पुरुषको हम जानते हैं, उन
महादेवका ध्यान करते हैं, वे भगवान रुद्र हमें सत्य मार्ग में
प्रेरित करते रहें। ३

अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः
सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः ॥ ४॥

जो अघोर हैं, घोर हैं, घोरसे भी घोरतर हैं और जो
सब कुछ हैं,जो सबके संहारक हैं उस रुद्ररूप को मेरा नमस्कार
हो। ४

वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय
नमः कालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय
नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो
मनोन्मनाय नमः ॥ ५॥

प्रभो! आप ही वामदेव, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, रुद्र, काल,
कलविकरण, बलविकरण, बल, बलप्रमथन, सर्वभूत दमनकारी
तथा मनोन्मन आदि नामोंसे प्रतिपादित होते हैं, इन सभी
नाम-रूपोंमें आपके लिये मेरा बारम्बार नमस्कार है। ५

सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः ।
भवे भवे नातिभवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः ॥ ६॥

मैं सद्योजात शिव की शरण लेता हूँ। सद्योजात को मेरा
नमस्कार है। किसी जन्म या जगत्में मेरा अतिभव-पराभव न
करें। आप भवोद्भव को मेरा नमस्कार है। ६

नमः सायं नमः प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा ।
भवाय च शर्वाय चोभाभ्यामकरं नमः ॥ ७॥

हे रुद्र! आपको सायंकाल, प्रातःकाल, रात्रि और दिनमें भी
नमस्कार है। मैं भवदेव तथा रुद्रदेव दोनोंको
नमस्कार करता हूँ। ७

यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत् ।
निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥ ८॥

वेद जिनके निःश्वास हैं, जिन्होंने वेदों से सारी सृष्टिकी
रचना की है और जो विद्याओंके तीर्थ स्वरूप हैं, ऐसे शिव की मैं
वन्दना करता हूँ । ८

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ ९॥

तीन नेत्रोंवाले, सुगन्धयुक्त एवं पुष्टिके वर्धक शंकरका हम
पूजन करते हैं, वे शंकर हमको दुःखोंसे ऐसे छुड़ायें जैसे
खरबूजा पककर बन्धनसे अपने-आप छूट जाता है, किंतु वे
शंकर हमें मोक्षसे दूर न करें । ९

सर्वो वै रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ।
पुरुषो वै रुद्रः सन्महो नमो नमः ।
विश्वं भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायमानं च यत् ।
सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥ १०॥

जो रुद्र उमापति हैं वही सब शरीरोंमें जीवरूपसे प्रविष्ट हैं,
उनके निमित्त हमारा प्रणाम हो। प्रसिद्ध एक अद्वितीय रुद्र ही पुरुष
है, वह ब्रह्मलोकमें ब्रह्मारूपसे, प्रजापतिलोकमें प्रजापतिरूपसे,
सूर्यमण्डलमें वैराटरूपसे तथा देहमें जीवरूपसे स्थित हुआ है;
उस महान सच्चिदानन्दस्वरूप रुद्रको बारम्बार प्रणाम हो। समस्त
चराचरात्मक जगत् जो विद्यमान है, हो गया है तथा होगा,वह
सब प्रपंच रुद्रकी सत्तासे भिन्न नहीं हो सकता, यह सब कुछ
रुद्र ही है, इस रुद्रके प्रति हम पनमस्कार करते हैं । १०