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यदि हम भारत का इतिहास देखें तो जब जब हिन्दू पुजारी वर्ग समाज में प्रभावी हुआ तब तब हिन्दू गुलाम हुआ. इस गुलामी के इतिहास को मौर्य व्रंश के उत्थान के समय से देखिये तो आपको यह पूरी तरह समझ में आ जायेगा. बुद्ध-बनिया-क्षत्रियों ने मौर्य साम्राज्य (322 BCE onwards) के दौर में भारत से हिन्दू धर्म को उखाड़ फेका था. षोडश महाजनपदों के उस दौर में देश के सबसे धनी श्रेष्ठियों (सेठ) ने बौध धर्म के प्रचार में धन का निवेश किया. बनियों के पैसे से ही बुद्ध के सबसे बड़े बिहार बने थे. उतने बड़े और भव्य मठ हिन्दुओं के नहीं थे. जब राजसस्ता ने भी बौध धर्म को प्रचारित करना शुरू किया तो हिन्दू स्वामी, बाबा, पुजारी कहाँ टिकते ? बौध धर्म एक विशाल दानव की तरह प्रकट हुआ और उसने अपने कदमों से हिन्दुओं को रौंद डाला. बौध धर्म के उत्तर काल में इसे कुषाण ग्रीक राजाओं ने प्रचारित किया. बौधों ने हिन्दू समाज पर कहर बरपा दिया. एक समय ऐसा भी आया जब बौध तांत्रिक ग्रुप में घोड़ो पर सवार होकर निकलते और हिन्दुओं की बेटियां उठा ले जाते थे. यह भी हिन्दुओं की दासता का लम्बा समय है. इस पुरे दौर में लगभग 700-800 साल बीत जाते हैं. तीसरी शताब्दी के बाद गुप्त साम्राज्य का अभ्युदय होने के बाद हिन्दू धर्म, संस्कृति और हिन्दूओं का पुन: अभ्युदय हुआ. लेकिन धार्मिक स्तर पर अब भी बौध शक्तिशाली थे. बौध धर्म का पूर्ण पतन की रुपरेखा बिहार के मिथिला में कुमारिल भट्ट और गौड़पादाचार्य ने बना दी थी. सातवी शताब्दी में महान आचार्य आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ. 8 वर्ष की उम्र में सन्यास ग्रहण कर आदि शंकराचार्य ने गौड़पदाचार्य के शिष्य गोविन्दपाद का शिष्यत्व स्वीकार किया और 22 वर्ष के कार्यकाल में मिशन के तहत उन्होंने भारत से बौधधर्म का पूर्ण रूप से सफाया कर दिया. बौध धर्म के अनुयायियों को हिमालय की कन्दराओं में शरण लेना पड़ा.

आदि शंकराचार्य के स्वधाम गमन के कुल 300 साल बीतते बीतते भारत के हिन्दू पुन: गुलामी की तरफ बढ़ गये. नवीं-दसवीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक का भारत का मध्य युग अंधयुग था. यह अंधयुग सामंतों, पुजारियों, तांत्रिकों और पुराणवादियों की निर्मिती थी. समाज में तांत्रिक भैरवों, कापालिकों का आतंक था-अपहरण, बलात्कार, हत्याएं आम बात थी. पौराणिकों ने घोर अविद्या का विस्तार किया और समाज की बौधिक क्षमता को पूर्णत: पंगु बना दिया. यह अविद्या में रहने वाला, संसारिकता और वासनाओं में डूबा रहने वाला वर्ग सदैव एक अंधयुग बनाता रहा है. वास्तव ये पुजारी वर्ग ‘अंधयुग बनाता रहा है’, यह कहना गलत होगा. उनकी अज्ञानता और अधर्म  (ये धर्म को अधर्म की तरह ही प्रयोग करते हैं. जिसे वे धर्म समझते हैं वो धर्म नहीं मूलभूत रूप से अधर्म होता है.) से यह अंधयुग एक दानव की तरह स्वयं प्रकट हो जाता है. बारहवीं शताब्दी तक आते आते हिन्दू इस्लाम के गुलाम हो गये. भारत अनेक देशों का एक देश है इसलिए सभी देशों को एकसाथ गुलाम बनाना इतना आसान नहीं था. इस्लाम को बारहवी शताब्दी से दो दशक लग गये. मुगल सल्तनत में इस्लाम का एक क्षत्र साम्राज्य खड़ा हुआ जो 500 सौ साल से ज्यादा रहा. विवेकानंद के अनुसार जब आक्रान्ता आये तो पुजारी भाग खड़े हुए. यह बात बहुत हास्यास्पद ठंग से दयानन्द सरस्वती ने द्वारका मन्दिर के बारे में लिखा कि जब महमूद गजनवी ने मन्दिर लूट लिया तो पूछा कि मन्दिर में तो बड़ी भीड़ रहती थी,यहाँ बड़े बड़े पुजारी थे. कहाँ गये सब ? खोजो उन्हें. तब सैनिक खोजने लगे, पता चला वो मन्दिर के बड़े बड़े घंटों में लटक रहे थे. यह दयानंद सरस्वती बनियों की ही उत्पत्ति था. यह विश्व भर में सेक्युलरिज्म की विचारधारा की जरूरत था. उस समय बनिया सेक्युलरिज्म का समर्थक था इसलिए पुजारी, बाबा, मन्दिर, पुराण इन सबका दुश्मन था. मारवाणियों और बनियों ने इसे फंड किया यह सब लिखने के लिए. एक तरीके से दयानन्द को जिहाद में लगाया. जितना बड़ा आक्रान्ता और जेहादी औरंगजेब था उससे कम जेहादी दयानंद सरस्वती नहीं था. जिस तरह इसने पौराणिक धर्म, दस अवतारों, मन्दिर इत्यादि पर हमला किया, उस तरह का हमला इतिहास में नहीं प्राप्त होता. वैष्णवों के भगवान कृष्ण का भी दयानन्द सरस्वती ने काफी मखौल उड़ाया. मन्दिरों को पोप लीला का अड्डा कहता था. गौरतलब है कि यह बनिया जो पिछले 65 साल सेल्युलरिज्म का समर्थक था, हिन्दुओं के देवी देवताओ की नंगी पेंटिंग बेचकर पैसे कमाता था और फिल्मों में पैसे लगा कर हिन्दू धर्म को बुरा दिखाता था, अकस्मात हिंदुत्व बन गया ? पूरी फिल्म उद्योग में फ़िल्में इन चंद गुजराती बनियों के ही निवेश से बनती हैं!

हिन्दू इस्लाम के गुलाम बन गये, इस्लाम ने भारत पर कमोवेश 700 साल राज किया. हिन्दुओं की गुलामी की शुरुआत 1199 में दिल्ली में  कुतुबमीनार के साथ ही हो गई थी. यह हिन्दुओं की गुलामी की मोटी मोटी टाईम लाइन है. अंग्रेजों ने भी ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना कर अपना विस्तार किया और मुगलों को पराजित कर ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की लेकिन अंग्रेज ज्यादा समय तक शासन नहीं कर पाए. मुगल तो भारत से कुछ भी बाहर लेकर नहीं गये, वो भारत के शासक हो गये. उन्होंने भारत को महाशक्ति में तब्दील कर दिया था. लेकिन ब्रिटिश  राज ने 1858 – 1947 के बीच जबर्दस्त लूट की और भारत की सम्पत्ति ब्रिटेन ले गये. भारत को कंगाल कर गये. हिन्दुओं की गुलामी में हिन्दुओं का मध्यवर्ग, पुजारी और छुद्र सामंत, बनिया सदैव शरीक रहे. लेकिन वैदिक आर्यों का एक ब्राह्मण वर्ग और भी सदैव रहा है जिनके बीच से आदि शंकराचार्य जैसे लोग आते रहे हैं और हिन्दुओं  को स्वतंत्र करते रहे हैं. आधुनिक युग में जब ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतन्त्रता का आन्दोलन शुरू हुआ तो इसमें कमोवेश जाहिल पुराणवादी पुजारी वर्ग था ही नहीं. लेकिन वैदिक धर्म के दार्शनिक आचार्य वर्ग थे जिन्होंने दक्षिण से भक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ किया, इसी वर्ग में तुलसीदास थे जिनके रामचरितमानस ने बहुत बड़ा काम किया. पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं का विद्वत वर्ग ने अलग सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रारम्भ किया. उन्होंने बड़ी लड़ाई पुजारियों से भी लड़ी जिन्होंने समाज को पंगु बना रखा था.  स्वतंत्रता की लड़ाई प्रमुख रूप से उन लोगों ने लड़ी जिसे दुनिया की समझ थी, जिनमे विद्वता थी और जो कभी गुलाम पसंद नहीं था. कूपमंडूक पुराणवादियों और पुजारियों से यह सम्भव ही नहीं था. देश 1947 में आजाद हुआ, यह एक नया भारत बना जो विश्व के साथ कदम मिलाकर चल सकता था. समाज के पिछड़े वर्ग के उत्थान की मुहीम शुरू हुई. कूपमंडूक पुराणवादियों और पुजारियों को अज्ञानता, अन्धविश्वास और अंधकार का साम्राज्य प्रिय है. पुजारियों, बाबाओं का यह वर्ग जनता के किसी तरह के Enlightenment के खिलाफ हैं चाहे वो दलित हो या स्त्री हो या कोई अन्य वंचित वर्ग हो. 

स्वतन्त्रता के 50-60 वर्ष बीतते बीतते हिंदुत्व फासिज्म की राजनीतिक मुहिम प्रभावी होने लगी. धूर्त देशद्रोहियों का मराठवाड़ में एक वर्ग था जिसने इसका प्रारम्भ किया. इस धूर्त वर्ग ने बनियों और पुजारियों के साथ मिलकर पुन: अज्ञानता, मिथ्यात्व, झूठ का विस्तार शुरू किया. हिंदुत्व ठगों का एक बड़ा रैकेट की तरह है. ये ठग जो देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में खिलाफ थे, वे ही अज्ञानता , मिथ्यात्व, झूठ का विस्तार के साथ धार्मिक दंगे, घृणा और विद्वेष की राजनीति की और सत्ता में आ गये. सत्ता में आने के बाद यह देश को चंद बनियों को बेचने लगे और देश की गुलामी की नई कहानी की शुरुआत कर दी है. धूर्त पुजारी वर्ग जिन्होंने हिन्दुओं को गुलाम बनाया,अब हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं. देश सम्प्रभु है जिसके सम्विधान में लिखा गया है ” हम भारत के लोग ” लेकिन ये एक स्वतंत्र सम्प्रभु भारत नहीं चाहते. ये चाहते अपना लूटपाट, बलात्कार, अज्ञानता वाला ..मध्ययुग का अंधयुग वाला भारत !

इतिहास हिन्दुओं की किस्मत में क्या लिखने वाला है ? यह काफी स्पष्ट हो चूका है. हिन्दू एकबार फिर गुलाम होने वाला है.