
जरासंध मथुरा के राजा कंस का ससुर एवं परम मित्र था.उसकी दोनों पुत्रियों आसित व प्रापित का विवाह कंस से हुआ था. श्रीकृष्ण से कंस वध का प्रतिशोध लेने के लिए उसने 17 बार मथुरा पर चढ़ाई की थी, लेकिन हर बार उसे असफल होना पड़ा था. जरासंध इतना क्रूर था कि उसके भय से अनेक राजा अपने राज्य छोड़ कर भाग गए थे. शिशुपाल जरासंध का सेनापति था. जरासंध बड़ा योद्धा और एक महारथी राजा था. उसके जन्म व मृत्यु की कथा भी बहुत ही रोचक है. जरासंध मगध (वर्तमान बिहार) का राजा था. वह अन्य राजाओं को हराकर अपने पहाड़ी किले में बंदी बना लेता था.जरासंध बहुत ही क्रूर था,वह बंदी राजाओं का वध कर चक्रवर्ती राजा बनना चाहता था. कथा के अनुसार भीम ने 13 दिन तक कुश्ती लड़ने के बाद जरासंध को पराजित कर उसका वध किया था. जरासंध ने अपने पराक्रम से 86 राजाओं को बंदी बना लिया था एक पहाड़ी किले में कैद कर लिया था. जरासंध तांत्रिक क्रिया द्वारा 100 को बंदी बनाकर उनकी बलि देना चाहता था, जिससे कि वह चक्रवर्ती सम्राट बन सके.
जरासंध के जन्म की कथा –
बृहद्रथ मगधदेश के राजा थे. उनकी दो पत्नियां थीं, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी. एक दिन संतान की चाह में राजा बृहद्रथ किसी महात्मा चण्डकौशिक के पास गए और सेवा कर उन्हें संतुष्ट किया. प्रसन्न होकर चण्डकौशिक ने उसे एक फल दिया और कहा कि ये फल अपनी पत्नी को खिला देना, इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी. चण्डकौशिक ने यह नहीं बताया कि कैसे खिलाना है. राजा ने वह फल काटकर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया. समय आने पर दोनों रानियों के गर्भ से शिशु के शरीर का एक-एक टुकड़ा पैदा हुआ. रानियों ने घबराकर शिशु के दोनों जीवित टुकड़ों को बाहर फेंक दिया. उसी समय वहां से एक राक्षसी गुजरी. उसका नाम जरा था. जब उसने जीवित शिशु के दो टुकड़ों को देखा तो अपनी माया से उन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया और वह शिशु एक हो गया. एक शरीर होते ही वह शिशु जोर-जोर से रोने लगा.
बालक की रोने की आवाज सुनकर दोनों रानियां बाहर निकली और उन्होंने उस बालक को गोद में ले लिया. राजा बृहद्रथ भी वहां आ गया और उसने उस राक्षसी से उसका परिचय पूछा. राक्षसी ने राजा को सारी बात सच-सच बता दी. राजा बहुत खुश हुआ और उसने उस बालक का नाम जरासंध रख दिया क्योंकि उसे जरा नाम की राक्षसी ने संधित (जोड़ा) किया था.
जरासंध बध-
जरासंध के जन्म की कथा किसी को ज्ञात नहीं थी, कृष्ण इसके जन्म के रहस्य को जानते थे. जरासंध का वध करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने योजना बनाई. योजना के अनुसार श्रीकृष्ण, भीम व अर्जुन को ब्राह्मण का वेष बनाकर जरासंध के पास गये और उसे कुश्ती के लिए ललकारा . जरासंध समझ गया कि ये ब्राह्मण नहीं है, ब्राह्मणों में इतना साहस नहीं होता. जरासंध के पूछने पर श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया और भीम से मल्ल युद्ध के लिए आमंत्रित किया.
जरासंध ने मद में भीम से कुश्ती लड़ने का निश्चय कर लिया. राजा जरासंध और भीम का युद्ध कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से 13 दिन तक लगातार चलता रहा. चौदहवें दिन भीम ने श्रीकृष्ण का इशारा समझ कर जरासंध के शरीर के दो टुकड़े कर दिए.
जरासंध का वध कर भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी कैद में जितने भी राजा थे, सबको आजाद कर दिया और कहा कि धर्मराज युधिष्ठिर चक्रवर्ती पद प्राप्त करने के लिए राजसूय यज्ञ करना चाहते हैं. आप लोग उनकी सहायता कीजिए. राजाओं ने श्रीकृष्ण का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और धर्मराज युधिष्ठिर को अपना राजा मान लिया. भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंध के पुत्र सहदेव को अभयदान देकर मगध का राजा बना दिया.