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दुस्तर रोग और कष्ट के लिए अष्टम हॉउस को देखना चाहिए, अष्टम स्थान में जैसा ग्रह, जैसी राशि और जैसा इस पर प्रभाव होता है उसी अनुरूप रोग, कष्ट, पीड़ा और मृत्यु बताई जाती है. अष्टम के बाद 22वें द्रेष्काण को देखना चाहिए. मृत्युकारी रोग इस द्रेष्काण से पता चलता है. यह देखना चाहिए लग्न से इस बाईसवें  द्रेष्काण का स्वामी कौन है, इसकी  राशि क्या है. 22वें द्रेष्काण और अष्टमेश में जो बली हो उसके अनुरूप रोगादि और मृत्यु कहा गया है. मान लो धनु लग्न के द्वितीय द्रेष्काण से 22वां द्रेष्काण मीन द्रेष्काण अर्थात कर्क का तृतीय द्रेष्काण मीन होगा. इसलिए कर्क जो इस लग्न में अष्टमेश है उसका स्वामी चन्द्रमा और कर्क से तृतीय द्रेष्काण अर्थात लग्न से 22वां द्रेष्काण के स्वामी बृहस्पति, इन दो ग्रहों में जो शक्तिशाली होगा उसी ग्रह के धातु प्रकोप आदि दोषों से जातक को रोग होगा और उसी अनुसार मृत्यु होगी.

उदाहरण के लिए रामकृष्ण परमहंस की कुंडली लेते हैं. रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु गले के कैंसर से हुई थी.

इस कुम्भलग्न की कुंडली में कुम्भ के प्रथम द्रेष्काण से 22वें द्रेष्काण का स्वामी शुक्र है और अष्टमेश लग्न में मारक सप्तमेश सूर्य से युत है. शुक्र उच्च का द्वितीय भाव में स्थित है और द्रेष्काण में यह 6th हॉउस में केतु के साथ है और हॉउस लार्ड द्वारा द्वितीय हॉउस से दृष्ट है. द्वितीय भाव मनुष्य का मुख है, तृतीय हॉउस गला है जिसका स्वामी मंगल है जो द्वादश में उच्च का है. केतु इस हॉउस को रिप्रेजेंट करता है, यह दशम भाव में वृश्चिक राशि में उच्च का है जो जल राशि है. द्रेष्काण कुंडली में यह शुक्र से युत है. कैंसर में जल राशि कारक होती है. कुम्भ भी आधी जलराशि है, मारकेश सूर्य कुम्भ में स्थित है. रामकृष्ण परमहंस को लम्बे समय तक तरल पदार्थ पर जिन्दा रहना पड़ा. गले में कैंसर से कोई भी ठोस खाद्य पदार्थ नीचे नहीं उतरता था.

इस परम्परिक पराशर द्रेष्काण चक्र में तृतीयेश मंगल जो द्वादश में उच्च का है वह स्वयं बीसवें द्रेष्काण में स्थित है और द्वितीय स्थित शुक्र पर इसकी मारक दृष्टि है. द्रेष्काण राशि का स्वामी बुध जो नैसर्गिक रूप से तृतीयेश होता है वह द्वतीय हॉउस लार्ड द्वारा दोनों ही कुंडली में दृष्ट है. लग्न लार्ड मारक सूर्य के साथ लग्न में है जो द्वादशेश भी है. यहाँ बृहस्पति लग्न कुंडली के षष्टेश से युत है और लग्न कुंडली में षष्टेश दृष्ट है. दोनों ही प्रकार के द्रेष्काण से एक ही निष्कर्ष निकला कि जातक गले के दुस्तर (क्रोनिक) रोग से पीड़ित है. यह रोग उसकी मृत्यु का कारण बना.