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सभी नवरात्रियों में अश्विन माह की नवरात्रि विशेष होती है. अगले महीने 15 अक्टूबर से अश्विन नवरात्रि का नौ दिन का शक्ति पूजन का महोत्सव प्रारम्भ हो जायेगा. नवरात्रि सभी हिन्दुओं के लिए वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे लम्बा त्यौहार है. यह देवी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों को समर्पित है. इन नौ दिनों के दौरान देवी दुर्गा का आशीर्वाद पाने के लिए ज्यादातर हिन्दू उपवास करते हैं. नवरात्रि में ज्यादातर लोग इन नौ दिनों के दौरान मांसाहारी भोजन और कुछ सब्जियों के सेवन से बचते हैं और सात्विक भोजन का सेवन करते हैं. सात्विक का मतलब है शुद्ध तत्व वाला यानी जिसमें शुद्धता के गुण हों. सात्विक भोजन शुद्ध और संतुलित होता है जिससे शांति, शीतलता, प्रसन्नता और मानसिक स्पष्टता महसूस होती है. राजसिक भोजन बहुत ज्यादा उत्तेजित करने वाला और तामसिक भोजन कमजोरी और आलस्य बढ़ाने वाला माना गया है. भगवद्गीता में सात्विक भोजन के बारे में कहा गया है –
आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।17.8।।
आयु, सत्त्वगुण, बल, आरोग्य, सुख और प्रसन्नता बढ़ानेवाले, स्थिर रहनेवाले, हृदयको शक्ति देनेवाले, रसयुक्त तथा चिकने — ऐसे आहार अर्थात् भोजन करनेके पदार्थ सात्त्विक मनुष्यको प्रिय होते हैं।
सात्विक भोजन शुद्ध, पौष्टिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है. यह हल्का, पौष्टिक और पचाने में आसान होता है इसलिए पूजा और साधना के समय इसको प्रमुखता दी जाती है . प्राकृतिक और शुद्ध खाद्य पदार्थों का सेवन करने से शरीर, मन और आत्मा के साथ सामंजस्य बना रहता है. सात्विक भोजन से बुद्धि सूक्ष्म होती है. उपनिषद में कहा गया कि सात्विक आहार से ध्रुवा स्मृति प्राप्त होती है, इसके द्वारा सभी ग्रन्थियों का भेदन कर मुनि जन मोक्ष लाभ करते थे.
आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः। स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थिनां विप्रमोक्षः

योग और आयुर्वेद में भी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए सात्विक भोजन को बहुत महत्व दिया गया है. भोजन न केवल शारीरिक पोषण का स्रोत है बल्कि यह व्यक्ति के दिमाग और चेतना को भी स्वस्थ तरीके से प्रभावित करता है. सात्विक भोजन मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिकता की वृद्धि करने वाला होता है. नवरात्रि के कुछ प्रसिद्ध खाद्य पदार्थ हैं –कुट्टू की पुरी, साबूदाना वड़ा, साबूदाना खिचड़ी और सिंघारे के पकौड़े या हलवा, आलू के चिप्स इत्यादि प्रसिद्ध हैं.

प्रकृति के गुणों के अनुसार मनुष्य अपने अपने स्वभाव के अनुसार भोजन करते हैं. कुछ सात्विक भोजन करते हैं, कुछ राजसिक और कुछ तामसिक भोजन ही करते हैं. मनुष्यों की प्रकृति के अनुसार ही उपासनाएं भी हैं. सबको आत्म उन्नति का सामान अधिकार प्रदान किया गया है. हेय कुछ भी नहीं है. एक ही शक्ति त्रिधा रूप में विभक्त है. ऊर्जा के रूप अलग अलग हैं लेकिन मूलभूत रूप से वह एक ही है. काष्ठ की अग्नि, लोहे की अग्नि, श्मशान की अग्नि, यज्ञ की अग्नि, सूर्य की अग्नि सब एक ही अग्नि है, अग्नि की जो मूल प्रकृति ‘दाहकता’ है वह एक ही है, भेद मिथ्या है. परन्तु स्थान का गुण भी इसमें किंचित समाहित हो जाता है इसलिए श्मशान की अग्नि और यज्ञ की अग्नि में व्यवहारिक भेद किया गया है. परमार्थत: कोई भेद नहीं है. यदि परमार्थत: कोई भेद होता तो श्मशानवासी शिव विद्या के अधिपति और कल्याणकारी नहीं होते और न ही हिन्दू धर्म के सभी सम्प्रदाय जो श्मशान साधनाओं को करते हैं, मुक्ति प्राप्त करते. पश्चिम बंगाल के परम शाक्त साधक वामा खेपा श्मशान में ही निवास करते थे और श्मशान की अग्नि का ही सेवन करते थे. साधना भेद से सात्विक, राजसिक और तामसिक भोजन अलग अलग कहा गया है. राजसिक भेद से ही काली को बलि प्रदान की जाती है और उसका प्रसाद सेवन किया जाता है.

नवरात्रि में अपनी प्रकृति के अनुसार मनुष्य उनकी त्रिविध उपासना करते हैं. ज्यादातर हिन्दू परिवार दुर्गा देवी की सात्विक उपासना करते हैं, या कामनाओं के अनुसार सात्विक-राजसिक मिश्रित उपासना करते हैं, यही उनके कल्याण के लिए श्रेष्ठ बताया गया है. उपासना भेद से ही सात्विक, राजसिक और तामसिक भोजन का प्रकार निश्चित किया गया है. भोजन को मुद्दा नहीं बनाना चाहिए. आदि शंकराचार्य ने जब मठों की स्थापना की तब चार आम्नायों के अनुसार भारत की परिकल्पना की थी. उन्होंने बंगाल, असम, कश्मीर, बिहार इस सब राज्यों का भ्रमण किया था. उन्हें पता था कि पश्चिम बंगाल , उत्तर पूर्वी भारत के राज्य, कश्मीर इत्यादि में एक सनातन धर्म की ही मान्यता है लेकिन इन क्षेत्रों के हिन्दुओं के खान-पान अलग अलग हैं, इन पर वैष्णव सात्विकता थोपी नहीं जा सकती है. आदि शंकराचार्य धर्म संस्थापक थे लेकिन उन्होंने भोजन को मुद्दा नहीं बनाया लेकिन हिंदुत्व फासिस्ट बनाते हैं. धर्म और खानपान की राजनीति करने वालों का पूर्णत: वहिष्कार करना चाहिए.