
बहुत कम हिन्दू जानते हैं कि इलाहावाद स्थित ललिता देवी शक्ति पीठ ईक्यावन शक्ति पीठों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण तथा पूजनीय है. जिन ईक्यावन शक्ति पीठों का नाम शास्त्रों में आता है, उसमें प्रयाग स्थित ललिता देवी का विशेष महात्म्य है ‘प्रयागे ललिता प्रोक्ता ‘. प्रयाग में यमुना तट पर सती के हाथ की उंगली गिरने से भगवती ललिता का प्राकट्य हुआ था. ऐसी मान्यता है कि मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मां ललिता के चरण छूकर बहती हैं, इसलिए मां को प्रयाग की महारानी भी कहा जाता है. इस शक्ति पीठ को इसलिये ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता कि यह देवी महर्षि भारद्वाज द्वारा भी पूजित हैं. इस प्राचीन मन्दिर में देवी का विग्रह छोटा है, यहाँ प्रमुख रूप से श्रीयंत्र की पूजा की जाती है. आगमों मे वर्णित है कि विश्रवा मुनि के पुत्र कुबेर ने भी देवी यहां गुप्त आराधना की थी. ललिता देवी प्रयाग की ही नहीं पूर्वीभारत की प्रमुख देवी कहीं जाती हैं तथा इन्हें लालित्य तथा ज्ञान की देवी कहा जाता है. यही ॠषि अम्भृण मुनि की पुत्री वाक्सूक्त के रूप मे भी प्रकट हुई थी. इन्हीं का वर्णन महाभाष्यकार पतंजलि ने पणिनि भाष्य मे किया है “ सोऽयं वाक्समाम्नायो वर्णसाम्नायः पुष्पतः फलितचन्द्रतारकवत् प्रतिमण्डितो वेदितव्यो ब्रह्मराशिः”. यही वरेण्य हैं और यही जिसका वरण करती हैं वही इनके स्वरूप का यथार्थतः ज्ञान प्राप्त कर पाता है जैसा की उपनिषद मे कहा गया है “यमेवैष वृणुते तनुऽस्वाम्”. इनकी पूजा प्रमुख रूप से परा गायत्री द्वारा करने का निर्देश किया गया है. इन्हीं के बारे में सप्तशती मे “परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी” कहा गया है . प्रयाग का ललिता पीठ कई मामलो में श्रेष्ठ है, यह योग पीठ कहा जाता है. बहुत कम लोग इस तथ्य को जानते हैं. यह चिन्मय ब्रह्मरूपिणि आद्याशक्ति हैं , सदैव हृदय में ध्यातितव्य हैं।
“विशुद्धा परा चिन्मयी स्वप्रकाशा
– मृतानन्दरूपा जगद्व्यापिका च।
तवैद्ग्विधा या निजाकारमूर्तिः।
किमस्मिभिरन्तहृर्दि ध्यातित्वया।।”
इनकी कथा अकथ्य हैं। प्रयाग तीर्थ में देवी की दाहिने हाथ की अंगुली गिरी थी. जहाँ जहाँ उनके अंग गिरे वहाँ वहाँ उनका नाम अलग है तथा वहाँ वहां शिव का नाम भी अलग अलग है. शिव ने देवी पार्वती के प्रेम में कहा था कि जहाँ जहाँ तुम्हारी पूजा जिस जिस रूप में होगी वहाँ वहाँ मैं तुम्हारे उस रूप के साथ भैरव रूप मे सदैव निवास करूंगा. ललिता देवी शक्ति पीठ में देवी का नाम ललिता है तथा शिव का नाम भव है. यह सदैव ध्यान रखना चाहिये कि किसी शक्ति पीठ का दर्शन तब तक अधूरा माना जाता जब तक दर्शनार्थी पीठ के भैरव की पूजा सम्पन्न नही कर लेता. वास्तव में नियमतः शिवपूजन के बाद ही शक्तिपीठ मे देवी दर्शन करना चाहिये. ललिता देवी शक्ति पीठ के शिव भवमोचक हैं.
यह मन्दिर आदिकाल से पूजित रहा है, कहा जाता है कि अर्जुन ने स्वयं यहाँ पर अपने बाणों से एक कूप का निर्माण किया था जिसे आज भी देखा जा सकता है. इलाहाबाद के बहुत ही भीड़ भरे इलाके में मीरापुर नामक मुहल्ले में यह प्राचीन देवी तीर्थ है. मन्दिर का जिर्णोद्धार पचास साल पहले किया गया था. शक्ति उपासक भक्तों को इस तीर्थ का दर्शन जरूर करना चाहिये. एक दशक से मेरी तो एक आदत सी रही कि इलाहाबाद पहूँचते ही सबसे पहले दवि दर्शन के लिये जाता था—कोई बुलाता नहीं है लेकिन पहुंचते ही उस स्थल की पवित्रता का स्पर्श पाने का मन करता था. देवी उपासकों को यह जानना चाहिए कि केवल ईक्यावन शक्ति स्थल ही देवी तीर्थ माने गये हैं जिनका शास्त्रों मे स्पष्ट वर्णन है, उन्हीं स्थलों की यात्रा से कुछ आध्यात्मिक लाभ होता है. बाकी तो आजकल धर्म बहुत बड़ा व्यापार बन गया है. चतुर लोग देवी मन्दिर बनवा लेते हैं और उसे शक्ति पीठ कह कर उसका प्रचार प्रसार करके उसे प्रचलित कर देते हैं और फिर दर्शनार्थियों से रूपये कमाने लगते हैं. वास्तव में जो शक्ति स्थल कहे गये हैं उनका चिन्मय प्रकाश व्यक्ति को परिवर्तित करता है क्योंकि बड़े बड़े साधकों तथा तथा सिद्धों द्वारा वह स्थल नित्य रहस्यमय ठंग से पूजित होता रहा है.
शिवस्त्वं शक्तिस्त्वं त्वमसि समय त्वं समयिनी
त्वमात्मा त्वं दीक्षा त्वमयमणिमादिर्गुणगण: ।
अविद्या त्वं विद्या त्वमसि निखिलं त्वं किमपरं
पृथक्तत्त्वं त्वत्तो भगवति ! न वीक्षामह इमे ।।
हे भगवती ! आप ही शिवरूप हो, शक्तिरूप हो, सिद्धांतरूप हो, सिद्धांत बनाने वाली हो, आत्मा हो, उपदेशरूप हो और अणिमादि सिद्धियाँ हो. आप ही समस्त गुणों का समूह हो, माया रूप हो और ज्ञानरूप चित्तस्वरूपभाव को प्रकट करने वाली भी आप ही हो, जो कुछ भी है वह सब आप ही हो. कौन सा तत्व आपसे भिन्न है, हम इस बात को नहीं जानते.
– श्री धर्माचार्य