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देव भूमि हिमाचल के कांगड़ा में मां महाबज्रेश्वरी का भव्य मन्दिर स्थित है. पुराणों के अनुसार यहां सती का दायां स्तन गिरा था. अति प्राचीन ज्ञानार्णव तंत्र ग्रन्थ में इसे भृगुपूरी और बृहदनील तंत्र में गुप्तपुरी कहा गया है “कामेश्वरी रतिश्चैव भृगुपुर्यां व्रजेश्वरी”. हिन्दू धर्म का यह महाभारत कालीन शक्ति स्थल चौदह हजार साल से भी पुराना है. इसका निर्माण पांडवों ने करवाया था.
कालान्तर में उत्तर बौधों की भी यह ईष्ट देवी बन गई इसलिए बौध भी यहाँ गुप्त रूप से बौद्ध साधना और दर्शन करते हैं. कांगड़ा तिब्बत से लगा होने के कारण 8वीं शताब्दी से ही तिब्बती बौध यहाँ आने लगे थे. बज्रेश्वरी और तारा शक्ति पीठ वीरभूमि, इन दोनों शक्तिपीठ में हिन्दू और बौद्ध दोनों की समान रुप से आस्था हैं. बौद्ध क्यों करते हैं इस मन्दिर में पूजा? यह रहस्य आगम का एक रहस्य है.

महाबज्रेश्वरी श्रीविद्या कही जाती हैं, इनकी अनाहत चक्र में स्थिति मानी गई है. शास्त्रों में माता महाबज्रेश्वरी स्वप्न अवस्था की अधिष्ठात्री देवी कही गई हैं इसलिए तैजस विश्व पर उनका अधिपत्य कहा गया है. मन भी स्वप्न अवस्था मे ह्रदय में स्थित होता है इसलिए जब हृदय पर हाथ रख कर सोते हो तब सपने जरूर आते हैं. स्वप्न अवस्था का जो तैजस विश्व् है, उसपर विष्णु भगवान का शासन है इसलिए महाबज्रेश्वरी को श्रीविद्या कहना उपयुक्त ही है. ॐ की दूसरी मात्रा ‘उ’ को ही तैजस कहते हैं. यह माया शक्ति को प्रदान करने वाला कहा जाता है. द्वितीय पाद को विष्णु कहते हैं और भगवान विष्णु परम मायावी हैं. माया तो मन की शक्ति से ही निर्मित होती है न. देखो सपने में कैसे कैसे जगत का निर्माण कर लेते हो? ऐसे महल में जाकर भोग करके आते हो जिसकी कल्पना जाग्रत अवस्था में नहीं करते.

Dream state is a Taijas तैजस universe , it is Second pada of ॐ. In it Gods and Sages roam. Gods enjoy it. It is this state in which one experiences something special during sadhana. In this state one encounters siddhas. Many have got initiation in this state. Second Buddha known as Nagarjuna received Sacred scriptures from Nagalok in this very state. Many great Sages unveiled unknown scriptures from this realm. If one knows this state completely, he would know the nature of mind. The nature of mind of God.

आदि शंकराचार्य ने लिखा है कि इस अवस्था में ही विज्ञान का उत्कर्ष होता है. इसी अवस्था में सभी सूक्ष्म विज्ञान की प्राप्ति होती है. यह महाकुण्डलिनी की दूसरी भूमि कही गई है.  लोग तो पहली भूमि को ही नहीं जानते. कुण्डलिनीं के इसी भूमि पर अवस्थान से रहस्यों का ज्ञान प्राप्त  होता है. इस भूमि पर ही अनेक साधकों को दिव्य ग्रन्थ प्राप्त हुए थे.

शाक्त धर्म में महाबज्रेश्वरी शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि और कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि की अधिष्ठात्री देवी भी मानी गई हैं.
उनकी निम्नलिखित मन्त्र से इन तिथियों में पूजन का विधान है –
  ऊँ ह्रीं क्लीं ऐं क्रोम नित्यमद्रवे ह्रीं ऊँ महावज्रेश्वरी नित्य श्री पादुकाम् पूजयामि तर्पयामि नमः।