
एक बार शनि देव कैलाश पर्वत पर शिव दर्शन के लिए आए. मौका गणेश का जन्म भी था. सभी देवता गणेश दर्शन कर चुके थे. शनि ने उस समय शिव को ध्यान में लीन देखा तो उन्होंने उन्हें ध्यान से उठाना उचित नहीं समझा. शिव को ध्यान में देख शनिदेव मां पार्वती के दर्शन के लिए पहुंच गए. गणेश का हालिया में ही जन्म हुआ था. पार्वती पुत्र गणेश के साथ बैठी थीं. कथा के अनुसार बालक गणेश का मुख इतना सुंदर और तेजमयी था कि उनके मुख दर्शन से ही सारे कष्ट दूर हो जाते थे.
शनि देव बालक गणेश के सुंदर मुख की ओर न देखते हुए आंखें नीची किए माता पार्वती से बात करने लगे. जब मां पार्वती ने देखा कि शनिदेव किसी को देख नहीं रहे हैं, वे अपनी निगाहें नीची किए हुए हैं. तब पार्वती ने शनि देव से पूछा कि वे नजरें नीची क्यों किये हुए हैं, किसी को देख क्यों नहीं रहे ? क्या उनको कोई दृष्टिदोष हो गया है? मेरे पुत्र को सबने देख कर आशीर्वाद दिया, शनि क्यों नहीं देना चाहते ! पार्वती के पूछने पर शनिदेव ने कारण बताते हुए कहा कि उन्हें उनकी पत्नी ने शाप दिया है कि वो जिसे देखेंगे उसका विनाश हो जाएगा. पार्वती ने पूछा कि उनकी पत्नी ने ऐसा शाप क्यों दिया है तो शनिदेव कहने लगे कि मैं एकबार ध्यान में स्थित था और मेरी पत्नी ऋतुकाल से निवृत्त होकर मेरे समीप आई लेकिन ध्यान में होने के कारण मैंने उसकी ओर नहीं देखा.
उसने इस अपमान के बदले में मुझे श्राप दे दिया कि तुम जिसकी ओर देखोगे, उसका विनाश हो जाएगा. ये बात सुन कर माता पार्वती ने हंसते हुए कहा – अरे, इतनी सी बात है ! आप मेरे पुत्र गणेश की ओर देखिए, उसके मुख का तेज समस्त कष्टों को हर लेता है. शनिदेव गणेश पर दृष्टि नहीं डालना चाहते थे लेकिन माता पार्वती के आदेश की अवहेलना भी नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने तिरछी निगाह से गणेश की ओर देखा. शनि देव की दृष्टि पड़ते ही बालक गणेश का सिर धड़ से कटकर नीचे गिर गया. तब भगवान विष्णु ने एक गजबालक का सिर श्रीगणेश के सिर पर स्थापित कर दिया था.