मन्त्र विद्या एक गुप्त विज्ञान है. जिस तरह आधुनिक विज्ञान में किसी देश की सरकार परमाणु बम की तकनीकी या कोई भी प्रभावशाली तकनीकी को गुप्त रखती है उसी तरह मन्त्र विद्या को मन्त्रो के ऋषियों ने गुप्त रखा है. मन्त्र विद्या सदैव परम्परा से प्राप्त होती है. सभी ग्रन्थों में यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि किताब में लिखे मन्त्र को पढकर जप करने वाले का नाश हो जाता है. मन्त्र के ऋषि होते हैं, छंद होता है, बीज, शक्ति और कीलक होता है. यदि मन्त्र जप करने वाले को उस मन्त्र का छंद नहीं पता अर्थात उसको जपने का स्वर क्या होना चाहिए, तो उसे मन्त्र से कुछ प्राप्त नहीं होता. पूर्व काल में गायत्री महाविद्या थी. इस गायत्री मन्त्र से सारे ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र इत्यादि बनते थे. गायत्री ऋषियों द्वारा कीलित है क्योंकि यह पराविद्या है. इसकी शक्ति ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अपने भीतर समाये हुए है, किसी अयोग्य मनुष्य के हाथ लग जाये तो वह इसका दुरूपयोग कर सृष्टि के नाश का कारण बन जायेगा. गायत्री की यह खासियत है कि साधक को पहले ठोक बजा कर देखती परखती है फिर अपनी शक्तियों को प्रकट करती है. राक्षस, दानव, असुर इस मन्त्र का जप नहीं करते थे क्योंकि यह कीलित है, उन्हें कभी सिद्ध ही नहीं होती. इसलिए वे तामसिक स्वभाव के मन्त्र जपते थे और घोर असुर तप करते थे. भगवद्गीता में असुरों के तामस तप का वर्णन किया गया है –
मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्।।17.19।।
जो तप अपने शरीरको पीड़ा पहुँचाकर या दूसरे को कष्ट पहुँचाने के लिये मूढ़तापूर्वक आग्रह से अर्थात् अज्ञानपूर्वक निश्चयसे किया जाता है? वह तामसी तप कहा गया है।
ज्यादातर राक्षस और दानव घोर तप देवताओं के प्रति द्वेष से करते थे. उन्हें कुछ शक्तियाँ तो प्राप्त हो जाती थीं लेकिन उससे उनका विनाश भी हो जाता था. गायत्री विशुद्ध सात्विक विद्या है इसलिए गायत्री को वेदमाता कहा गया है. यह सबको नहीं दी जा सकती है. क्या कोई शास्त्रीय संगीत का गुरु किसी को भी अपनी विद्या देता है? नहीं देता. शिष्य को लम्बे समय तक परखता है, फिर प्रदान करता है. मन्त्र विद्या के बावत भी यही बात है.
मन्त्र से कब लाभ मिलने लगेगा ? इसके लिए निम्नलिखित बातें आपमें होनी चाहिए –
1-गुरु और परम्परा के प्रति विशेष श्रद्धा और आस्था होनी चाहिए
2-सनातन धर्म की श्रुतियों में आस्था होनी चाहिए
3-मन्त्र योग्य गुरु द्वारा विधिपूर्वक प्राप्त होना चाहिए ( आज के धूर्त गुरुओं की तरह नहीं कि 5000 की भीड़ में माईक से मन्त्र रेवड़ी की तरह बाँट रहे )
4-मन्त्र को उस मन्त्र देवता का विग्रह मानना चाहिए और उसमे वैसी ही आस्था होनी चाहिए
5-मन्त्र जप विधिपूर्व करना चाहिए, जैसे गुरु ने बताया वैसे ही करना चाहिए
6-मन्त्र की संख्या के हिसाब से कमसे कम एकबार पूरा अनुष्ठान करना चाहिए. उदाहरण के लिए “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ यह भगवान विष्णु का द्वादशाक्षरी मन्त्र है. तो इस मन्त्र का कम से कम एक बार 12 लाख मन्त्र वैष्णव विधि के अनुसार अवश्य अनुष्ठान करना चाहिए.
7-यदि मन्त्र जप के समय कोई विघ्न आये तो देवता की पूजा करनी चाहिए, गुरु का स्मरण करना चाहिए और विघ्ननाश के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. हलांकि विधिपूर्वक जप करने पर कोई विघ्न नहीं आते.;
8-यदि लम्बे समय तक जप करने पर भी कोई लाभ होता न दिखे तो भी मन्त्र का त्याग नहीं करना चाहिए. सिद्धि मनुष्य को कर्मानुसार प्राप्त होती है. कई बार ऐसा होता है कि जप की संख्या आपके बुरे कर्मों के नाश करने में चूक जाती है. उदाहरण के लिए मान लीजिये कि पूर्व जन्म में आपने किसी की हत्या की थी. ऐसे में मन्त्र तब तक फलीभूत नहीं होगा जब यह ब्रह्म हत्या का पाप जल कर भस्म नहीं हो जाता.
9-ब्राह्मण द्वेषी को कभी मन्त्र सिद्ध नहीं होते. ब्राह्मण की पूजा करनी ही चाहिए.
10-अविधि पूर्वक, मनमाने ढंग से, अशुद्ध होकर, क्रोध या विद्वेष में जप करने से मन्त्र स्वयं ही जप करने वाले का नाश कर देता है.
इन दस बातों को मान कर चलने वाले को मन्त्र अवश्य फलीभूत होगा.

