
हर संस्कृति में मेहमानवाजी की कुछ विशेषताएं होती हैं. चीन और तिब्बत इत्यादि में मेहमानवाजी में सबसे पहले चाय दी जाती है. चाय चीन का एक प्राचीन पेय है. पश्चिमी देशों में मेहमानवाजी में मदिरा से प्रिय लोगों का स्वागत करते हैं.आधुनिक युग में तो मदिरा ही सबसे बड़ा पेय हो गया है. लेकिन देव भूमि भारत में प्राचीन समय में मधुपर्क से मेहमानवाजी करने की परम्परा थी. यह सनातन हिन्दू धर्म में देवार्चन की विधि से हमें पता चलता है. मन्दिर में भगवान का आवाहन के बाद पाद्य अर्पण किया जाता है , अर्घ्य दिया जाता है , आचमन करवाया जाता है फिर उन्हें पीने के लिए मधुपर्क दिया जाता है. मधुपर्क निःसंदेश भारत का विशेष पेय रहा था. वैदिक काल मे इसे थकावट मिटाने वाला औषधीय पेय के रूप में लिया जाता था. वैदिक सोम विशेष पेय था, सबके लिए नहीं था क्योकि इसका मान्त्रिक उद्घाटन करना सबके लिए कठिन था. सोम की मांत्रिक वैदिक विद्या कुछ ही ब्राह्मणों तक सीमित थी. सोम इतना विशेष पेय था की इंद्र की आज्ञा के बगैर इसे कोई अन्य देवता भी ग्रहण नहीं सकता था. वेदों में यह कथा आती है जिसके अनुसार अश्विन कुमारों को ऋषि अंगिरस से बड़ी कठिनाइयों से इसकी विद्या प्राप्त हो पाई थी. सोम निःसंदेह मदिरा नहीं था.
सोम के बारे में एक कवि नें कुछ इस तरह लिखा है :
सीहण करूँ दूध होय ते कनक पात्र मा ठरे !
सोमवल्लरी ब्राह्मणसुतने झरे, बगर बनासीने वमन करावे !!
सिंहनी का दूध केवल स्वर्ण पात्र में ही ठहर सकता है. सोमपान केवल ब्राह्मण पुत्र ही कर सकता है, कोई अनधिकारी पियेगा तो वमन हो जायेगा.
इसका तात्पर्य सिर्फ पेय नहीं था, इसका तात्पर्य वैदिक मन्त्रों द्वारा निःसृत वह तत्व था जो इसके वाचक को उन्मत्त कर देता था.
दूसरी तरफ दूसरे नम्बर पर यह मधुपर्क है जो देवताओं को प्रिय है. मधुपर्क या सोम पीने के बाद मुख को उच्छिष्ट नहीं माना जाता था. यह एक शुद्ध सात्विक पेय है यदि इसे वैदिक मंत्रो द्वारा ग्रहण किया जाय तो यह दिव्य औषधि है. यह पेय भी सबको नहीं दिया जाता था. आपस्तम्भ इत्यादि सूत्रों के अनुसार अतिथि विशेष होना चाहिए जैसे राजा, मंत्री, श्वसुर, ऋत्विक, जमाता इत्यादि . मधुपर्क से इन विशेष अतिथियों का स्वागत किया जाता था. इस विशेष स्वागत के कारण कुछ शोधकर्त्ता यह भी कहते हैं कि यह मधुपर्क इसलिए विशेष था कि इसमें गोमांस का कीमा या टुकड़ा डाला जाता था. ऋगवेद के अंतर्गत आने वाले वाला कौषीतकी गृह्यसूत्र में लिखा है- “विवाहे गामर्हयित्वा गृहेषु गतेषु कांतानां मधुपर्किक्य “ अर्थात विवाह में कन्या के घर आ जाने पर वर और उसके साथी गाय की पूजा के बाद ही वे मधुपर्क के योग्य होते हैं. आश्वलायन गृह्य सूत्र के अनुसार ऋग्वेद के मन्त्र “माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि: ।” से गाय को छोड़ देना चाहिए. कहीं कहीं जहाँ “‘मांस रहित अर्घ्य नहीं होता'” ऐसा वर्णन आता है, उसका अर्थ ये है कि अर्घ्य में सावां डाला जाता है या उड़द. उड़द को मांस ही कहा गया है. गृह्यसूत्र में जहाँ यह प्रसंग है कि गाय की पूजा किये बिना वर-वधू मधुपर्क के अधिकारी नहीं होते, वहां मांस की बात कुतर्क ही है.
कालान्तर में मधुपर्क सभी मेहमानों के लिए प्रयुक्त होने लगा था. मेहमान को सम्मान के लिए पहले अच्छे आसन पर बैठाते थे, फिर परात या बड़ी थाली में उनके पैरों को धोते थे तथा आचमन कराते थे फिर उन्हें पीने के लिए मधुपर्क देते थे. मधुपर्क ग्रहण करने के बाद अंत में मेहमान को एक गाय भी भेंट में दी जाती थी. स्पष्ट ही है की मधुपर्क से सबका स्वागत नहीं किया जाता था. वर्तमान समय में गायों की संख्या कम होने की वजह से गायें महंगी हैं तो ये विशेष अतिथियों को देने के बारे में भी कोई नहीं सोच सकता है. पुराण कथा से सभी हिन्दू जानते हैं की भगवान कृष्ण ने अपने मित्र सुदामा के पाँव धोकर कैसे स्वागत किया था. प्राचीन समय में ऐसे ही अतिथियों का स्वागत किया जाता था.
अब किन चीजों से बनता है मधुपर्क ? मधुपर्क का अर्थ है “मधुना पर्क सम्पर्को अस्य सः ” मतलब इस पेय में मधु की विशेष मात्रा का प्रयोग किया जाता था.
मधुपर्क को सदैव स्वर्ण पात्र, चांदी के पात्र या अष्टधातु के बर्तन में ही बनाने की परम्परा रही है क्योकि अतिथि को देवता ही माना जाता था.
सुवर्ण पात्र में यदि मधु , शर्करा (फलों के रस या गन्ने से विशेष विधि से प्राप्त ), दुग्ध, घी और दधि को विशेष परिमाण में मिश्रित करें तो यह औषधि ही बन जाती है।
मधुपर्क ग्रहण करने के बारे में गृह्य सूत्र कहते हैं –
मित्रस्य त्वा चक्षुषा प्रत्यक्षे -इति मन्त्रेणोंद्घातीत मधुपर्क
यजमानकरस्यमेव निरीक्ष्य!!
हे मधुपर्क! मैं तुम्हें सूर्य के नेत्रों से देखता हूँ. इस मन्त्र से उद्घाटित इस मघुपर्क को यजमान के हाथ में ही रहते देखकर यह अगला मन्त्र पढ़े और फिर उसके हाथ से मधुपर्क ग्रहण करें.
इस मन्त्र से स्पष्ट है कि मधुपर्क कोई सामान्य पेय नहीं रहा होगा. वैदिक सोम रस के बाद मधुपर्क को ही देवताओं और ब्राह्मणों का प्रिय बतलाया गया है.
मधुपर्क की तासीर ठंडी होती है संभवतः इसलिए यह भारतीय संस्कृति में आतिथ्य का सबसे प्रमुख पेय रहा होगा.