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 महाभारत के अनुसार अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने जब तक्षक नाग के दंश से पिता परीक्षित की मृत्यु का कारण जाना तो सर्पो से बदला लेने के लिए उसने एक बहुत बड़े सर्पसत्र नामक यज्ञ का आयोजन किया। इस सर्प सत्र में उस समय के सभी महान आचार्य और ब्राह्मण उपस्थित थे। कथा के अनुसार वासुकी नाग की पुत्री के गर्भ से उत्पन्न आस्तिक मुनि ने श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन ही सर्पसत्र रोका था और नागों की रक्षा की थी। नागों के राजा तक्षक के बचने से नागों का वंश बच गया। सर्पों की प्रसन्नता के लिए इस दिन से नागपंचमी मनाई जाने लगी। आस्तिक मुनि ने आग के ताप से नाग को बचाने के लिए उन पर कच्चा दूध डाला था इसलिए नाग को दूध पिलाने की भी परम्परा बन गई। आस्तिक मुनि की कथा सुनने से भी सर्प दोष नहीं होता ऐसा कहा गया है. आस्तिक मुनि की कथा महाभारत में है जिसे हम अगले पोस्ट में विस्तार से लिखेंगे। यह कथा बहुत रोचक हैं।

नाग पंचमी के दिन जिन नाग देवों का स्मरण कर पूजा की जाती है उन नामों में अनंत, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख, कालिया और पिंगल प्रमुख हैं। ये अष्ट नाग कहे गये हैं । लेकिन द्वादश नागों का वर्णन भी भागवत पुराण में है जो सूर्य के साथ बारह महीनों में रथ की लगाम बन कर साथ साथ भ्रमण करते हैं। कालरूपधारी भगवान सूर्य लोगों का व्यवहार ठीक-ठीक चलाने के लिये चैत्रादि बारह महीनों में अपने भिन्न-भिन्न बारह गणों के साथ चक्कर लगाया करते हैं । इनके साथ हर महीने अलग अ;ग नाग यात्रा करते हैं। चैत्र मास में -वासुकि सर्प, वैशाख मास -कच्छनीर सर्प, जेष्ठ मास-तक्षक सर्प, आषाढ़ मास-शुक्र नाग , श्रावण मास -एलापत्र नाग, भाद्रपद – शंखपाल नाग, माघ मास में -धनंजय नाग,फाल्गुन मास -ऐरावत सर्प ,मार्गशीर्ष मास-महाशंख नाग , पौष मास -कर्कोटक नाग, आश्विन मास-कम्बल नाग, कार्तिक मास- अश्वतर नाग।
ये द्वादश नाग ज्योतिष में भी काल सर्पदोष के अंतर्गत गिने जाते हैं जो निम्न प्रकार से हैं –

महाभारत में तक्षक नाग को पकड़ने की कथा भी आती है जिसमे एक ब्राह्मण इंद्र की पूजा करता है और उनसे नागों को वश में करने का आशीर्वाद मांगता है जिसमें इंद्र उसे घोड़े की गुदा में फूंक मारने को कहते हैं –

इस दिन घर के दरवाजे पर गाय के गोबर या गेरू से सांप की 8 आकृतियां बनाने की परंपरा है। हल्दी, रोली, अक्षत और पुष्प चढ़ाकर सर्प देवता की पूजा की जाती है.
नाग पंचमी की कुछ फेक कथायें बाद में पंडों और बनियों ने मिलकर बना लिया और उसे जनता में प्रचार कर नागपंचमी पर नाग और उससे जुड़ी आवश्यक वस्तुएं बेचने लगे.