
मार्कण्डेयपुराण का एक यह एक विचित्र गपोड़ है कि आद्याशक्ति जो ब्रह्मरूपिणी हैं, उनसे एक तुच्छ दैत्य जो भगवद्गीता के अनुसार असुरी सम्पत वाला है, जिसे ब्रह्म के सच्चिदानंद स्वरूप का दर्शन सम्भव नहीं, वह कहता है तू मेरी रानी बन जा. इस प्रकार के गपोड़शंख से अनेक झूठ पैदा हुए थे. पौराणिक कथाकार धूर्तों ने यज्ञ में सती को जलवा कर, शिव के बाल से वीरभद्र पैदा करा दिया जबकि यज्ञ शिव ने विध्वंश किया था. यह महाभारत में कृष्ण पांड्वो को बताते हैं. इस दूसरी कहानी से जो झूठ थी, शक्ति पीठ उत्पन्न हो गये. यह झूठ पर आधारित पुजारियों के मिथ्याचार और अज्ञानता के केंद्र हैं. जहाँ योनि गिरी सबसे ज्यादा पवित्र हो गया लेकिन स्त्री को अपवित्र ही मानते हैं और मन्दिर में नहीं घुसने देते. दूसरी तरफ मन्दिर की मूर्ति से निकले मासिक धर्म के गंदे रक्त को खाते पीते हैं.
वैष्णव पुराण में मार्कण्डेयपुराण की लिस्टिंग तामसिक पुराण में किया गया है क्योकि इसमें मदिरा पान करने और स्त्री के साथ रमण करने वाले साधु दत्तात्रेय का वर्णन है. मार्कण्डेयपुराण में श्राद्ध में मांस से पिंडदान बताया गया है. यह शैव-शाक्त परम्परा का प्रारम्भिक पुराण है जिसमे उस समय समाज में जो प्रेक्टिस में था, उसका इसमें वर्णन किया गया है. यह पुराण इस बात का साक्षी है कि हिन्दू समाज में श्राद्ध में मांस से पिंडदान किया जाता था और मांसाहार व्यापक स्तर पर मौजूद था. मार्कण्डेयपुराण के समय तक शाक्त धर्म बहुत उन्नत नहीं हो पाया था. इसी तामसिक पुराण का हिस्सा देवी महात्म्य या शप्तशती है जो एक पौराणिक परम्परा का एक तांत्रिक ग्रन्थ में गिना जाता है. जिसमे दो करेक्टर सुरथ राजा और समाधि वैश्य अपने रक्त से बलि देते हुए तामसिक पूजा ही करते हैं.

यदि इस बात को श्रुति ग्रन्थों के प्रकाश में देखा जाय तो यह निकृष्ट माना जायेगा इसलिए पुराण की तामसिक कटेगरी युक्तियुक्त ही है. भगवद्गीता में कहा गया है – “कर्षयन्तः शरीरस्थं भूतग्राममचेतसः” जो शरीरमें स्थित पाँच भूतो तथा अन्तःकरणमें स्थित मुझ परमात्माको भी कृश करनेवाले हैं उन अज्ञानियों को असुर समझ. इस तरह श्रुतियों और भगवद्गीता के प्रकाश में देखने पर दुर्गा शप्तशती में जो दो सुरथ और समाधि बनिया का रक्तप्रोक्षित बलि से पूजा का वर्णन है, वह तमोगुणी तांत्रिक है तथा आसुरी कटेगरी में आता है. यह निकृष्ट है. यह अधोगति प्रदान करने वाले अशुद्ध पौराणिक-तांत्रिक परम्परा का ग्रन्थ है लेकिन इसका प्रचलन काफी बढ़ गया और नवरात्रि में परायण का विषय हो गया. नवरात्रि के 9 दिन मार्कण्डेय पुराण के 700 श्लोक का परायण करते हैं. परायण करते हैं लेकिन श्लोक का अर्थ नहीं पता. जिनको नहीं पता परायण करवा लेता हैं. बुक परायणवाद पुराणवाद से आया. बाबाओ और पुजारियों का पेटपरायणवाद भी पुराणवाद से ही आया.