
कलियुग है. कलियुग में धर्म को नजदीक से देखो. इसका चरित्र मूलभूत रूप से भगवद्गीता में बताये गये असुरी सम्पद के अनुसार ही है. पुराणों में कहा गया है कि कलियुग सत्य और नैतिकता में गिरावट का युग है. यह धर्म की अवनति का युग है. इस युग में जो कुछ भी धर्म के विपरीत है, वही धर्म है. हिंसा, अधर्म, बलात्कार, भ्रष्टाचार को धर्म से उचित ठहराया जा रहा है. त्याग धर्म खत्म हो चूका है, जो बाबा जितना धनी और भोगी है उतना बड़ा बाबा है. पुराण में है कि आश्रम वेश्याओं के अड्डे बन जायेंगे, जो प्रत्यक्ष है. आश्रम का बाबा सन्यास वस्त्र पहन कर सांसारिक की भोग में रहने लगेगा. वेश्याएं कांवर यात्रा में वेश्याएं नाच रही हैं. अब मठों में वेश्याओं का स्वर्ग होगा जो लगभग बन चूका है. वेश्यायें मन्दिर में राधा का स्थान ले लेंगी.
कलियुग में किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक स्थिति केवल बाह्य प्रतीकों के आधार पर निर्धारित की जाएगी. आज जो जितना दिखावा करता है वह उतना ही धार्मिक है. जो शब्दों के खेल में बहुत चतुर है, उसे विद्वान माना जाता. कांवर यात्रा में कांवरियों ने जो उत्पात और हिंसा की है वह ऐतहासिक है. गृहस्थ पीटे गये, कारें तोड़ी गई, ढ़ाबे उजाड़े गये, आर्मी का जवान पीटा गया और सड़क पर जो दिखा उसे मारा गया. यह शिव भक्त नहीं थे, ये दैत्य थे जिन्हें फासिस्ट योगी सरकार ने भय का माहौल बनाने के लिए बढ़ावा दिया है. उनके खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं की गई.