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प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है लेकिन सावन का प्रदोष व्रत सबसे महत्वपूर्ण है. यह शिव को समर्पित महीना है. वैष्णवों की एकादशी की तरह ही शैवों का प्रदोष व्रत भी हर महीने में दो बार आता है. पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष और दूसरा प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष में होता है, इस तरह से एकादशी की तरह ही साल में कुल प्रदोष व्रत 24 बार होता है. एकादशी और त्रयोदशी इत्यादि तिथियों में माहवारी किये जाने वाले व्रतों का ज्योतिषीय पहलू है. सूर्य और चन्द्र इस सृष्टि का अक्ष की तरह कार्यरत हैं जिसे हम इड़ा और पिंगला नाम की नाड़ियों से समझ सकते हैं. मनुष्य की इड़ा और पिंगला से बहने वाली प्राणवायु सूर्य और चन्द्र की गति और उदय तथा अस्त पर आश्रित है. ऋतुओं के अनुसार राशियों के अनुसार भी इनका स्वभाव बदलता रहता है. वार के अनुसार प्रदोष व्रत का महात्म्य है. सावन माह का पहला प्रदोष व्रत 22 जुलाई को रखा जाएगा. यह प्रदोष व्रत मंगलवार को है ऐसे में इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि यह व्रत करने से व्रत ऋण, भूमि, भवन संबंधित परेशानियां दूर होती हैं. इस बार यह प्रदोष व्रत चातुर्मास के में पड़ रहा है. चातुर्मास में जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव संभालते हैं. ऐसे में चातुर्मास में पड़ने वाला यह प्रदोष व्रत अत्यंत लाभकारी है. इस दिन शिव की पूजा का फल तत्काल मिलता है.

भौम प्रदोष मुहूर्त –

वैदिक पंचांग के अनुसार, सावन कृष्ण त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 22 जुलाई को सुबह के 07 बजकर 04 मिनट पर हो रही है और 23 जुलाई को त्रयोदशी तिथि का समापन सुबह 04 बजकर 38 मिनट पर हो रहा है. प्रदोष व्रत 8 जुलाई को रखा जाएगा. भगवान शिव की पूजा हमेशा प्रदोष काल में की जाती है. ऐसे में पूजा के लिए प्रदोष काल का समय शाम को 7:18 बजे से लेकर रात के 9:22 बजे तक होगा. किसी भी शुभ लग्न में शिव पूजन किया जा सकता हैं. यदि त्रयोदशी रात्रि में रहती है तो शिव की तुरीय पूजा भी करना अत्यंत लाभकारी होगी.