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दस महाविद्याओं में दूसरी महाविद्या तारा हैं. पश्चिम बंगाल के वीरभूमि में स्थित भारत का सबसे प्रसिद्द देवी तारा का प्राचीन मन्दिर. यह तारा की पूजा का प्रमुख केन्द्र है इसलिए इसे तारापीठ कहा जाता है. तारा मां के बड़े साधक थे वामा खेपा जो रामकृष्ण परमहंस के समकालीन थी. वामा खेपा को अद्भुत सिद्धियाँ प्राप्त हुई थी. यहाँ देवी का पहला भोग वामा खेपा को ही दिया जाता है. वामा खेपा इतने बड़े भक्त थे कि माँ तारा उन्हें स्वयं आकर भोजन कराती थीं. मन्दिर के पास ही उनका समाधि स्थल है. पहले भोग उनके पास रखा जाता है फिर देवी को अर्पित किया जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती के तीनों नेत्रों के तारक बतीस योजन के त्रिकोण का निर्माण करते हुए यहाँ तीन विभिन्न स्थानों पर गिरे थे.

माता तारा दसमहाविद्याओं में एक हैं इसलिए उनकी पूजा तांत्रिक विधि से होती है और उन्हें नैवेद्य में सब कुछ अर्पित किया जाता है.