वैष्णवों के भागवत पुराण में परीक्षित के द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर शुक देव ने वैदिक धर्म की श्रुतियों के विपरीत दिया है. परीक्षित ने जो सवाल पूछा था उसका उत्तर तांत्रिक है. परीक्षित पूछता है –
कृष्णं विदु: परं कान्तं न तु ब्रह्मतया मुने । गुणप्रवाहोपरमस्तासां गुणधियां कथम् ॥ १२ ॥
परीक्षित ने पूछा – हे मुने ! गोपियों ने कृष्ण को अपना प्रेमी (कान्तं शब्द प्रयोग किया गया है जिसके अर्थ में काम अनुस्यूत है ) माना, उनमें ब्रह्म भाव नहीं था. ऐसे गुणप्रवाह अर्थात काम भाव जिन गुणों के प्रवाह से निष्पन्न होता है उससे, ऐसे काम भाव की उपस्थिति में वे किस प्रकार से संसारिकता से मुक्त हो सकती थीं ?
यह सवाल 6 वर्ष की कन्या के सन्दर्भ में परीक्षित ने नहीं पूछा जैसा कि अनेक वैष्णव धूर्त जनता को उल्लू बनाते रहते हैं, क्योंकि 6 वर्ष की कन्या कांता नहीं होती, उसे व्यस्क होना चाहिए. कृष्ण शादीशुदा महिलाओं से यह बात कहते हैं, अविवाहित कन्या से नहीं –
कृष्ण महिलाओं से कहते हैं कि वापस घर जाकर पति की सेवा करो, दूसरे पुरुष के साथ रमण करना अनैतिक कर्म है ? यह भक्त से नहीं कहा गया, गोपियाँ भक्त नहीं थीं. वे काम भाव से प्रेरित थीं. भक्त से यह कहने कोई आवश्यकता नहीं पडती. प्रेम भी एडल्ट्री नहीं है.
अस्वर्ग्यमयशस्यं च फल्गु कृच्छ्रं भयावहम् ।
जुगुप्सितं च सर्वत्र ह्यौपपत्यं कुलस्त्रिय: ॥
यहाँ औपपत्यं शब्द प्रयोग किया गया है अर्थात वे दूसरे की पत्नियाँ थी जो रास करने गई थी. रासलीला एक तांत्रिक साधना स्थल है जहाँ दोनों प्रकार स्त्रियों के साथ राजा कृष्ण जी तन्त्र साधना कर रहे हैं. कृष्ण ने तांत्रिक की तरह कहा कि यदपि की लोक दृष्टि से यह अनौतिक कर्म है लेकिन जिनकी तन्त्र साधना में आस्था हो, जो दृढ़ प्रतिज्ञ हों, जिनको परिवार- समाज की परवाह न हो उनका स्वागत है. तन्त्र में सामाजिक, पारवारिक बंधन नहीं होना चाहिए, ना ही शर्म, जुगुप्सा, खेद, पाप की भावना आदि भावनाएं होनी चाहिए. कृष्ण पहले वस्त्र हरण करके यह बता चुके थे. भागवत का उपदेश श्रुतियों के विपरीत तंत्र के वाम मार्ग का उपदेश हैं जिसमें वासना, काम-क्रोध-घृणा आदि घोरतर वृत्तियों से ही पंचमकार के प्रयोग द्वारा मुक्ति बताई गई है. शुकदेव ने वेदांत का उपदेश नहीं किया, उन्होंने तंत्र के वामाचार या कुलाचार का उपदेश किया.
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च । नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते ॥ १५ ॥
यदि मनुष्य काम क्रोध, भय, स्नेह, मैत्री इत्यादि द्वारा ईश्वर की उपासना करे और उसे उनमें नियुक्त करे तो तन्मयता से अपने ईष्ट से एकत्व की प्राप्ति कर लेता है.
वेदांत की त्रयी के अंतर्गत भगवद्गीता मान्य है यदपि यह एक स्मृति है लेकिन इसे वेदांत का आथेंटिक ग्रन्थ माना गया है. भगवद्गीता में स्वयं कृष्ण ने ही यह उपदेश कहा है –
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।3.37।
काम और क्रोध दोनों ही रजोगुण से उत्पन्न होते हैं, यह बहुत खानेवाला और महापापी है; ‘काम’ सब कुछ खा जाता है और भ्रष्ट कर देता है. हे अर्जुन, इसे ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु जानो.
ज्योहिं जब आप कहते हैं कि ईर्ष्या, घृणा, क्रोध या यौन इच्छा मुक्ति के साधन हैं; आप वेदांत विरोधी, वेद विरोधी हो जाते है. ऐसे में सन्यास, त्याग, बाबाओं और साधुओं या मंदिर या धर्म की ही क्या आवश्यकता है? कोई भी उपनिषद घृणा, ईर्ष्या, हिंसा या समूह मैथुन द्वारा मुक्ति की शिक्षा नहीं देता.
अस्तु भागवत महापुराण एक कुलाचार तन्त्र का ग्रन्थ है क्योंकि यह तंत्र में बताया जाता है कि सम्भोग से भी मुक्ति प्राप्त होती है.भागवत पुराण वैष्णवों का extreme fall है और यह पतन तंत्रवादियों के गहरे प्रभाव में हुआ. हिन्दू राजा यह दुराचार पसंद करते थे और उनके लिए यह लिखा गया. यह दो स्पष्ट सिद्धांत है -एक वेदांत द्वारा उपदेश किया गया है, दूसरा वामाचारी भागवती वैष्णवों द्वारा उपदेश किया गया है-

इससे यह स्पष्ट है कि भागवती वैष्णव वेदांत और वैदिक धर्म का केवल ढोंग करते हैं, वस्तुत: वे वामाचारी हैं. सभी बड़े सेक्स मन्दिर भागवत के लिखे जाने के दौर के हैं या उसके बाद राजाओं द्वारा बनवाये गये. चेन्नाकेशव मंदिर और केशव मंदिर में मुख मैथुन की यह प्रतिमा 12 वीं शताब्दी की है. भागवत पुराण का कोई उद्धरण 7वीं शताब्दी में जन्मे आदि शंकराचार्य के ग्रन्थ में प्राप्त नहीं होता. यह नवीं या दसवीं शताब्दी में लिखा गया था.

यदि वैष्णव भागवती वामाचारी नहीं थे तो केशव/ विष्णु मन्दिर में यह ऑरल सेक्स की प्रतिमा क्यों है? पदावली विष्णु मंदिर में विस्तृत कामुक नक्काशी है. यह 10वीं शताब्दी का विष्णु मंदिर है. इसके आसपास भागवत पुराण लिखा गया था. मध्य युग में हिन्दू राजाओं द्वारा बनवाये गये मिनिएचर चित्र कृष्ण-राधा के सेक्स को पोर्नोग्राफी के स्तर तक ले जाते हैं. उड़ीसा में भी जगन्नाथ मन्दिर एक वामाचार तंत्र का ही मन्दिर है जिसको मन्दिर के बाहर बनाएं गये सम्भोगरत शिल्पों में देखा जा सकता है. उड़ीसा के ताड़ पर बने सेक्स करते राधा-कृष्ण के मिनियेचर भी इसका एक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं. सामंत और धनी वणिकों के डिमांड पर यह चित्र बनाये जाते थे.

