वैष्णव वे हैं जो विष्णु या विष्णु के अवतारों के उपासक होते हैं. सबसे पहले वैष्णव स्वयं वैवस्वत मनु हैं. इसी पोर्टल पर आपको मनु से सम्बन्धित प्रकरण मिल जायेगा जिसमें मनु के सबसे बड़े पुत्र इक्ष्वाकु द्वारा मांस से श्राद्ध का जिक्र है. वाल्मीकि रामायण के इस प्रकरण में इतिहास दर्ज है जो वैष्णवों के मांसाहारी होने की पुष्टि करता है. कथा के अनुसार एक दिन राजा इक्ष्वाकु खरगोश के मांस से श्राद्ध कर रहे थे और महर्षि वसिष्ठ श्राद्ध करवा रहे थे. विकुक्षि को श्राद्ध के लिए खरगोश का शिकार करने के लिए भेजा गया. उसने शिकार किया लेकिन उसमे से एक खरगोश को भून कर खा गया. इस कारण उसका नाम शशाद पड़ गया था.
द्वापर में भी सबसे बड़े वैष्णव, कृष्ण के सबसे प्रिय पांडवों द्वारा भी मांस पकाने और खाने का जिक्र है. महाभारत अरण्य पर्व में इतिहास है कि धौम्य ऋषि ने युधिष्ठिर की याचना पर उन्हें सूर्य देव के 108 नाम का उपदेश किया था. उन्होंने कहा इन नामों द्वारा सूर्य की उपासना करने से तुम्हारी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जायेंगी. उनके उपदेश पर चलते हुए युधिष्ठिर ने 108 नामों से सूर्य देव की उपासना की थी. युधिष्ठिर की उपासना से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें वर दिया कि 12 वर्ष तक उनकी रसोई ने अन्न अक्षय रहेगा. गौरतलब है कि महाभारत में अक्षय पात्र का जिक्र नहीं आया है. अक्षय पात्र का जिक्र पुराणों में आता है.


प्रसंग में स्पष्ट रूप से जिक्र आया है जिससे स्पष्ट होता है कि द्रौपदी रसोई में चार प्रकार के अन्न में मांस भी पकाती थीं और पांडव उस अन्न का भोजन ब्राह्मणों को भी कराते थे. मांस खाने का जिक्र कहीं भी ऋषियों का नहीं आता. यदपि की कहीं कहीं किसी याज्ञिक कर्मकांड के सम्बन्ध में उनके कुछ उपदेश प्राप्त होते हैं. यह प्रसंग ज्यादातर सांसारिक राजाओं के सम्बन्ध में अर्थात पितृमर्गियों के सम्बन्ध में ही आता है जिसमें सांसारिक ब्राह्मण भी आते हैं. जहाँ मार्कण्डेय पुराण इत्यादि में मांस से श्राद्ध का जिक्र है वह भी पितृमर्गियों से ही सम्बन्धित है और उस काल में यह किया जाता था. सभी प्राचीन ग्रन्थों से कहीं न कहीं वैदिक आर्य संस्कृति के मांसाहारी होने की पुष्टि होती है.

