Spread the love

कथावाचक मोरारी बापू वृद्धावस्था में पहुंचने के बाद अठिया गये हैं. पूर्व में उन्होंने श्री कृष्ण जी और बलराम को पियक्कड़ कहा था और श्मशान में शादी करवाई थी. शमशान की यह शादी शैतानवाद का अलख जगाने के लिए की गई थी ऐसा मोरारी की ग्रह दशा से प्रतीत होता है. कल बनारस में अपनी पत्नी की मृत्यु के तीन दिन बाद सूतक काल में ही रामकथा का प्रारम्भ कर दिया. यही नहीं रामकथा से पहले काशी विश्वनाथ में पूजन भी किया था. खबर वायरल होने के बाद बनारस में हाहाकार मच गया. मोरारी बापू की धर्मपत्नी आजीवन उनके लिए सिंदूर लगाती रहीं थी लेकिन मोरारी ने धर्म का पालन नहीं किया, उनकी मृत्यु के दो दिन बाद सूतक का पालन नहीं कर उन्होंने सिंदूर का मान लिहाज भी नहीं रखा. ऐसा प्रतीत होता है यह भी भाजपा का प्रायोजित कार्यक्रम था कि सिंदूर के बहाने ऑपरेशन सिंदूर की बात निकलेगी जिसके द्वारा जनता को बरगलाया जा सकता है. ध्यान रहे, सारा अधर्म गुजरात से ही आ रहा है, मोरारी बापू गुजराती ही हैं.

शास्त्रों के अनुसार गृहस्थ संत पर भी सूतक के नियम लागू होते हैं. सूतक के नियम उनपर लागू नहीं होते जो विरक्त सन्यासी हैं. जिन्होंने विधिवत संन्यास ग्रहण किया उन्हें इस दायरे से शास्त्र मुक्त करते हैं. धर्मसूत्र के अनुसार, माता-पिता के निधन पर क्रमशः 7 और 10 दिन का सूतक माना जाता है. सूतक तब तक माना जाता है जब तक प्रेत रहता है. मोरारी बापू स्वयं को गृहस्थ मानते हैं और उनकी पत्नी का हाल ही में निधन हुआ, इसलिए उन्होंने सूतक में शास्त्रीय मर्यादा उलंघन किया है.

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि सूतक में श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में दर्शन कर मोरारी बापू ने मंदिर परिसर को अशुद्ध किया है जो लोग मंदिर में भगवान का दर्शन कर रहे हैं उनको भी दोष लग रहा है. इस कृत्य के बाद मंदिर का शुद्धिकरण करना आवश्यक है. वैष्णव हो या गृहस्थ कोई भी सूतक से मुक्त नहीं है. वैष्णव वैसे भी पूर्ण सन्यासी नहीं होते क्योंकि वे शिखा रखते हैं और स्मार्त धर्म के अनुसार चलते हैं..

शंकराचार्य और अन्य संतों द्वारा कड़ी भर्त्सना के बाद मोरारी बापू ने माफ़ी मांग ली है.