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हर साल ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का उपवास किया जाता है. इस व्रत में पानी पीना भी वर्जित होता हैं इसलिये इस व्रत को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है. इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं. निर्जला एकादशी का व्रत बहुत पुण्य देने वाला माना गया है. इस व्रत की पुराणों में बहुत महिमा बताई गई है. पुराणों के अनुसार सभी एकादशी व्रत का पुण्य एक यह निर्जला एकादशी व्रत ही दे देता है. इस बार निर्जला एकादशी व्रत 6 जून को किया जाएगा. महाभारत के अनुसार पांडव भाइयों में से भीम ने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बगैर जल ग्रहण किए एकादशी का व्रत किया था. मान्यता के अनुसार यह व्रत महिलाओं को नहीं करना चाहिए हलांकि आधुनिक काल में महिलाये सभी वर्जित कार्य करने में गर्व का अनुभव करती हैं. पुराणों के अनुसार इस दिन मीठा शक्कर युक्त जल से भरा कलश मन्दिर में चढ़ाना व किसी ब्राह्मण को दान करना पुण्यदायक माना जाता है. निर्जला एकादशी पर व्रत करते हुए विधि पूर्वक विष्णु की पूजा करनी चाहिए.

मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि 6 जून 2025 को सुबह 2:15 बजे से शुरू होकर 7 जून 2025 को सुबह 4:47 बजे समाप्त होगी. ऐसे में निर्जला एकादशी 6 जून को रखा जायेगा. कुछ वैष्णव इस एकादशी का व्रत 7 जून को भी करेंगे. इस प्रकार निर्जला एकादशी व्रत दो दिन रखा जाएगा.

निर्जला एकादशी व्रत कथा-

भीम सेन बोले – हे पितामह ! मेरी एक विनती है वह सुनें . युधिष्ठिर , कुंती , द्रोपदी , अर्जुन , नकुल , सहदेव ये सभी एकादशी को उपवास करते हैं. वे मुझसे प्रत्येक एकादशी पर कहते हैं की भीमसेन ! तुम भी एकादशी का उपवास किया करो. मैं उनसे कहता हूँ कि हे भ्राता ! मुझसे भूख सहन नहीं होती. मैं ब्राह्मणों को दान करूंगा, भगवान श्री कृष्ण का पूजन करूंगा. लेकिन हे पितामह, बिना उपवास किये एकादशी के व्रत का फल कैसे मिलेगा ? भीमसेन का यह वचन सुनकर व्यास जी बोले – भीमसेन तुम्हे स्वर्ग अत्यंत प्रिय है इसलिए दोनों पक्षों को एकादशी का व्रत करना तुम्हारे लिए आवश्यक है. भीमसेन बोले –  पितामह! मैं आपसे कहता हूँ एक बार भोजन करने से मैं शांत नहीं रह सकता फिर उपवास कैसे करूंगा? हे महामुने ! वृक नामक अग्नि सदैव मेरे पेट में रहती हैं. जब में बहुत सा अन्न खाऊं तब शांत होती है. हे महामुने ! मुझे वर्ष में एक उपवास बताइये जिसे मैं कर लूँ और मुझे स्वर्ग मिल जाये. उस एक व्रत को मैं विधिपूर्वक करूंगा, इसलिये निश्चय करके विशेष फलदाई एकादशी उपवास के बारे में बताने की कृपा करे. जिससे मेरा कल्याण हो.

व्यासजी बोले ! हे नराधिप ! तुमने मानव मानव धर्म व वैदिक धर्म सुने पर कलयुग में उन धर्मो को करने का सामर्थ्य मनुष्य में नहीं हैं. सरल उपाय , थोडा धन तथा कम परिश्रम से महाफल प्राप्त होने की विधि मैं तुमसे कहता हूँ. ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी व्रत जो कोई भी विधि विधान से पूरी श्रद्धा से करता है उसका निश्चित ही कल्याण होता है. माशे भर सुवर्ण का दान जिसमें डूब जाये उतना ही जल आचमन के लिए कहा गया हैं. वही शरीर को पवित्र करने वाला है. गौ के कर्ण के समान हाथ करके माशे भर जल पीना चाहिए. उससे न अधिक न कम. एकादशी के सूर्योदय से द्वाद्शी के सूर्योदय तक अन्न जल का सेवन न करे. ऐसा करने से बारह महीने की एकादशी का फल व्रती को बिना प्रयास के ही मिल जाता है. द्वाद्शी के दिन ब्राह्मण भोज करवा कर  यथा शक्ति  दान करे. फिर व्रती परिवार सहित स्वयं भोजन करे.

भीमसेन इस प्रकार विधि विधान से जो उपवास करता है उसका पुण्य सुनो. वर्ष भर में जितनी एकादशी होती हैं उन सब के बराबर फल निर्जला एकादशी उपवास से मिल जाता हैं. इसमें संदेह नहीं है. निर्जला एकादशी को निराहार रहने से मनुष्य सब पापो से मुक्त हो जाता है.  सब तीर्थो में जो पुण्य होता हैं और सब दान करने से जो फल मिलता है , हे वृकोदर ! वही फल निर्जला एकादशी के व्रत से मिल जाता है. निर्जला एकादशी के व्रत के प्रभाव से बड़े शरीर वाले भयंकर काले पीले रंग के दंड पाशधारी यम के दूत उसके पास नहीं आते. व्रत के प्रभाव से व्रती को भगवान विष्णु के दूत लेने आते हैं और पालकी में बैठाकर विष्णु लोक में ले जाते हैं. इसलिये यत्न पूर्वक श्रद्धा व भक्ति से निर्जला एकादशी व्रत करना चाहिए.

हे जनमेजय ! निर्जला एकादशी के महात्म्य को सुनकर पांडवों ने यह व्रत किया था. उसी दिन से भीमसेन ने निर्जला एकादशी का उपवास किया. तभी से इनका नाम भीमसेन एकादशी हो गया. हे राजन ! इस प्रकार सब पापों के नाश के लिए तुम भी यत्नपूर्वक निर्जला एकादशी का व्रत और भगवान का पूजन करो. हे नराधिप ! जो मनुष्य जल दान और गौदान न कर सके तो कलश पर वस्त्र लपेटकर सुवर्ण का दान करे. जो कोई इस प्रकार जल दान करता है उसको एक प्रहर में करौड पल सुवर्ण दान का फल मिलता है. निर्जला एकादशी के दिन स्नान , दान,जप- तप , होम जों कुछ दान पुण्य मनुष्य करता है वे सब अक्षय हो जाते हैं उनका कभी क्षय नहीं होता. जो कोई निर्जला एकादशी के दिन रात्रि जागरण करते हैं और अन्न , मीठा जल कलश , शय्या दान करता है उसे श्री हरी के चरणों में स्थान मिलता है.