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नवरात्रि के नौवें दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है कि मां सिद्धिदात्री सभी 18 प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं. शिव ने भी माता सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर इनसे सभी 18 सिद्धियां प्राप्त की थीं. अट्ठारह सिद्धियों में प्रमुख अष्ट सिद्धियों को अणिमा, ईशित्व, वशित्व, लघिमा, गरिमा, प्राकाम्य, महिमा और प्राप्ति नामक से जाना जाता है. देवी सिद्धिदात्री की कृपा से शिव समस्त सिद्धियाँ प्राप्त करने के बाद अर्धनारीश्वर हुए थे. माता सिद्धिदात्री की नवें दिन श्री राम ने दर्शन कर विजय का वरदान प्राप्त किया था. माता सिद्धिदात्री के सिंहस्था रूप का ध्यान भी किया जाता है और कमलासना रूप का ध्यान भी किया जाता है. मां कमल पर विराजमान रहती हैं और माता के चार भुजाएं हैं जिनमें से तीन हाथों में शंख, चक्र और कमल का फूल धारण किये है और एक हाथ वरद मुद्रा में हैं.

सिद्धिदात्री मंत्र –
1- ‘ॐ सिद्धिदात्र्यै नम:
2-ॐ ह्रीं स: सिद्धिदात्र्यै नम:

नमस्कार मन्त्र –

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम् ।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम् ।।

या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

ध्यान –
हृतपुण्डरीक मध्यस्थां प्रात: सूर्य समप्रभां।
पशाकुंशधरां सौम्यां वरदाभय हस्तकाम ।
त्रिनेत्रां रक्तवसनां भक्तकामदुधां भजे।।

कालाभ्रामां कटाक्षैररिकुल भयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां।
शंखचक्र कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्व्हन्तीम त्रिनेत्रां ।।
सिंहस्कन्धाधिरुढ़ां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पुरयन्तीं ।
ध्यायेद दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामै:।।

स्तोत्र –

कञ्चनाभां शङ्खचक्रगदापद्मधरां मुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
नलिस्थिताम् नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनीं।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥

कवच-

ॐकारः पातु शीर्षो माँ, ऐं बीजम् माँ हृदयो।
हीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजम् पातु क्लीं बीजम् माँ नेत्रम्‌ घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्ववदनो॥

आरती-

जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।
तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥

तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥

तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥