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वैदिक ज्योतिष में अनेक अशुभ योग बताये गये हैं. इन अशुभ योगों में एक शूल योग है. शूल त्रिशूल समानार्थक है अर्थात इस अशुभ योग में ग्रह तीन शूल में स्थित होते हैं. यह तब बनता है जब राहु केतु को छोड़ कर सातों ग्रह तीन राशियों में स्थित होते हैं. किसी भी ज्योतिषीय योग में राहु केतु को नहीं गिना जाता है. योग ग्रहों से बनते है, राहु केतु छाया ग्रह हैं. इस योग में कार्य करने से व्यक्ति को कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. इस योग में में उत्पन्न जातक जीवन में असफल होते हैं और उन्हें कार्य से हर जगह दुख ही दुख मिलते हैं.

इस योग में जन्मा जातक धनहीन और निर्दयी होता है. अक्सर ये जातक जातक दरिद्र, रोगी और कुकर्मी भी होते हैं. यह ध्यान रखना चाहिए कि महूर्त के शूल योग से यह अलग है. मुहूर्त के शूल योग में भी जन्मे जातक दुखी रहते हैं. शूल की पहली 5 घटी को सभी अच्छे कार्यों के लिये अशुभ माना जाता है.