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प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. वैष्णवों की एकादशी की तरह ही शैवों का प्रदोष व्रत भी हर महीने में दो बार आता है. पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष और दूसरा प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष में होता है, इस तरह से एकादशी की तरह ही साल में कुल प्रदोष व्रत 24 बार होता है. एकादशी और त्रयोदशी इत्यादि तिथियों में माहवारी किये जाने वाले व्रतों का ज्योतिषीय पहलू है. सूर्य और चन्द्र इस सृष्टि का अक्ष की तरह कार्यरत हैं जिसे हम इड़ा और पिंगला नाम की नाड़ियों से समझ सकते हैं. मनुष्य की इड़ा और पिंगला से बहने वाली प्राणवायु सूर्य और चन्द्र की गति और उदय तथा अस्त पर आश्रित है. ऋतुओं के अनुसार राशियों के अनुसार भी इनका स्वभाव बदलता रहता है.

शास्त्रों के अनुसार हर महीना किसी आदित्य द्वारा शासित है और उससे विशेष नक्षत्र, ग्रह और राशियाँ जुड़ी हुई रहती हैं. फाल्गुन शुक्र और उसके नक्षत्र द्वारा शासित महीना है जो कुम्भ राशि और सिंह राशि के एक्सिस में घटित होता है. पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र में एक बासंती उत्सवधर्मिता है, यह पूर्व काल में विवाह का नक्षत्र रहा है. वसंत की उत्सवधर्मिता के कारण रंगों से इस महीने का गहरा सम्बन्ध है इसलिए इस महीने का प्रदोष व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 11 मार्च 2025 को रखा जाएगा. धार्मिक मान्यता है कि फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष काल में भगवान शंकर शिवलिंग में वास करते हैं, इस दिन जो भी भक्त भगवान शिव की विविध प्रकार से पूजा करता है, उसे धन, सुख और ऐश्वर्य का आशीर्वाद मिलता है.

फाल्गुन प्रदोष व्रत का मुहूर्त –

पंचांग के अनुसार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 11 मार्च को सुबह 08 बजकर 13 मिनट पर होगी और अगले दिन 12 मार्च को 09 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी. प्रदोष काल के कारण 11 मार्च 2025 दिन मंगलवार को भौम प्रदोष व्रत रखा जाएगा. स्कन्द पुराण के अनुसार त्रयोदशी तिथि के दिन शिव जी कैलाश पर शाम को नृत्य करते हैं. इस दिन प्रदोष काल में शाम 06 बजकर 27 मिनट से लेकर 08 बजकर 53 मिनट तक का पूजन समय है.