हनुमान चालीसा रामायणी पन्थ का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है जिसमें चालीस चौपाई हैं. यह हनुमान की एक स्तुति है जो लोक भाषा में लिखी गई है. इस बुकलेट के बारे में एक कहानी प्रसिद्ध है कि तुलसी दास ने किसी मृत को जीवित करने का कोई चमत्कार कर दिया था. यह खबर चारो तरफ फ़ैल गई. अकबर के मंत्रियों ने बताया कि तुलसी दास नाम का भक्त कवि बहुत चमत्कारी है. यह सुनकर तुलसीदास को अकबर ने अपनी सभा में बुलाया और कहा कि सभा में कोई चमत्कार दिखाओं या जेल जाओ. तुलसीदास जी ने कोई चमत्कार नहीं दिखाया तब अकबर ने क्रोधित होकर उन्हें फतेहपुर सीकरी किले की जेल में डाल दिया था. इस जेल में तुलसीदास जी ने 40 दिन हनुमान चालीसा लिखी थी. इसके बाद उन्होंने 40 दिनों तक हनुमान चलीसा का पाठ किया था जिससे 40वें दिन चमत्कार हुआ.
ऐसा कहा जाता है कि 40वें दिन जब हनुमान चालीसा का पाठ पूरा हुआ, तब बंदरों की एक सेना ने दरबार और शहर पर हमला कर दिया और उत्पात मचाने लगे. उत्पात मचाने वाले बंदर रुक नहीं रहे थे, हमला करते ही जा रहे थे और कोई भी मदद करता नजर नहीं आ रहा था. अकबर को किसी ने यह बताया कि यह तुलसीदास जी की प्रार्थनाओं के चलते हमला हो रहा है. उन्हें यदि जेल से रिहा नहीं किया गया तो बन्दर सबको मार डालेंगे. अकबर तुलसीदास जी के पास गया और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी. तुलसी दास को रिहा किया गया इसके पश्चात सभी बंदर वहां से चले गए. देश और हिन्दू उन दिनों गुलाम था, थोड़ी ज्यादा प्रार्थना कर दिए होते तो क्या मुगलों को करोड़ो बन्दर भगा नहीं सकते थे? बंदरों ने तो लंका को तहसनहस कर दिया था !
यह उस तुलसी दास के बारे में कहानी है जो अपनी दरिद्रता खत्म करने के लिए जिन्दगी भर राम नाम जप किये, कितनी ही प्रार्थना की थी, कितनी बार रोये थे लेकिन उनकी दरिद्रता खत्म नहीं हुई थी. कवितावली में जगह जगह उन्होंने पद्य लिखे हैं जिसमे उन्होंने धन की याचना की थी-
नाम ओट लेत ही निखोट होत खोटे खल,
चोट बिनु मोट पाइ भयो न निहाल को?।
तुलसी की बार बड़ी* ढील होति, सीलसिन्धु!
बिगरी सुधारिबे† को दूसरो दयालु को?॥
राम की आड़ लेते ही खोटे खल भी निखोटे (बिना ऐब) मनुष्य हो जाते हैं। ऐसा कौन है जो बिना चोट (डर वा श्रम) के नाम लेते ही मोट (बहुत सा धन) पाकर निहाल न हो? तुलसीदास की बेर बड़ी ढील हो रही है, हे शील के समुद्र! बिगड़ी की सुधारनेवाला तुम्हारे बिना कौन है?
देव तौ दयानिकेत, देत दादि दीनन की,
मेरी बार मेरे ही अभाग नाथ ढोल की॥
देव! आप तो दया के घर हैं। दीनों की दादि (फ़रियाद) देते हैं (इन्साफ़ कर देते हैं)। यह मेरा ही दुर्भाग्य है कि मेरी बार ढील डाल दी है अर्थात देरी कर दी।
तुलसी दास मन वचन कर्म से राम का ही होकर रहने की बात करते हैं और कहते हैं जिसे रामनाम का भरोसा है, उसी का भरोसा (सच्चा) है. इतने सच्चे भरोसे के साथ रहकर भी जीवन धन ऐश्वर्य की तो छोड़ो उन्हें मांग के खाना पड़ा और मस्जिद में सोना पड़ा था. ऐसे अनेक दोहे चौपाई हैं जिसमे तुलसी दास थोड़े धन और अन्न के लिए राम के समक्ष विलखते हैं. लेकिन रामायण पूरा होने के बाद भी उनकी इच्छाएं पूरी नहीं हुईं. ऐसे में उपरोक्त बंदरों वाली कहानी फेक ही लगती है. हनुमान चलीसा का सैकड़ों पाठ करने वालों को भी कुछ नहीं मिलता. बहुत लोगों का यह अनुभव है.

