यदि संक्षिप्त में समझें तो वेदों के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि त्रि-तत्वात्मक है. वेद को त्रयी कहा जाता है क्योंकि वेद तीन ही मान्य हैं. यह तीन वेद तीन गुणों और तत्वों के प्रतीक हैं. सम्पूर्ण विश्व अग्नि, सूर्य और सोमतत्वात्मक माना गया है.
सर्वतत्वमय: सर्वमन्त्रदैवतविग्रह:।
सर्वाम्नायात्मकश्चायं प्रणव: परिपठ्यते।
शब्दब्रह्मात्मना सोऽयं महानिर्वाणबोधक:।।
प्रणव की मात्राएँ ही ये तीन तत्व हैं. प्रणव अग्नि-सूर्य-सोमात्मक है. यह वेदों और सृष्टि का आदि बीज है. इसी का उपदेश सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान ने ब्रह्मा जी को दिया था. भगवद्गीता में कहा गया है –
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ।।3.15।।
यज्ञ कर्मोंसे निष्पन्न होता है। कर्मोंको तू वेदसे उत्पन्न जान और वेदको अक्षर ब्रह्मसे प्रकट हुआ जान, इसलिये वह सर्वव्यापी परमात्मा यज्ञ (कर्तव्य-कर्म) में नित्य प्रतिष्ठित है.
इसप्रकार इस सृष्टि में जो कुछ भी है वह वेद से परिव्याप्त है. इन तीन तत्वों को ही सृष्टि का कारण माना गया है और ये ही ब्रह्मा-विष्णु-महेश रूप में कल्पित किये गये हैं – “अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां सरूपाः” यह भी मूलभूत रूप से प्रकृति तत्व के अंतर्गत ही है.
यह शरीर भी तीन तत्वों से व्याप्त है इसलिए इसे वेदी कहा जाता है. इस शरीर में अग्निमंडल गुह्य प्रदेश में स्थित है जिसके अधिष्ठाता ब्रह्मा हैं. सौर मंडल उदर में स्थित है जिसके अधिष्ठाता विष्णु हैं. शरीर में जीवभाव को ही सोममंडल कहा जाता है इस सोममंडल के अधिष्ठाता हर अर्थात शिव हैं. इन्हें सकल विद्याओं का गुरु इसीलिए कहा जाता हैं.
ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां
ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम् ॥
अग्नि और सूर्य का सम्हार इस सोमतत्व में हो जाता है. हिन्दू धर्म में कलश स्थापना में इन तीन मंडलों का न्यास किया जाता है. अग्नि मंडल दश कलात्मक है, सूर्य मंडल द्वादश कलात्मक है और सोममंडल षोडशकलात्मक है. सोममंडल को जीवभाव इसलिए कहते हैं क्योकि यह पुरुष भी षोडशकलात्मक माना गया है. जो परम शिव हैं वो इन तीनों का अतिक्रमण करके स्थित हैं “त्रिपद्स्यामृतं दिवि”.
हर अर्थात शिव जिनकी शिवरात्रि होती है वो इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु से ऊपर अवस्थित हैं और उनमें हीं इनका सम्हार हो जाता है. ब्रह्मा विष्णु के कर्म का समाहार रूप में शिव स्थित हैं. यह कारण है ज्ञान को भी सम्हार रूप कहा जाता है. शिव सम्हार के देवता इसीलिए माने जाते हैं. सभी ग्रन्थों में कहा गया है कि ज्ञान के लिए शिव की उपासना करें. शिव ही ज्ञान और योग के प्रवर्तक हैं.
अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः
सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः ॥ ४॥
जो अघोर हैं, घोर हैं, घोरसे भी घोरतर हैं और जो
सर्वसंहारी रुद्ररूप हैं, आपके उन सभी स्वरूपोंको मेरा नमस्कार
हो ।

