ब्राह्मण को व्यापार कर्म नहीं करना चाहिए, यह मनु के धर्म की एक प्रमुख प्रस्थापना है. इस प्रस्थापना को वैवश्वत मनु ने स्थापित किया था और सभी प्रमुख स्मृतियों में इसका एक समान ही वर्णन है. कुछ कर्मों में तो ब्राह्मण कोई भी ग्राह्य हो जाता है परन्तु श्राद्ध कर्म में कोई भी ब्राह्मण ग्राह्य नहीं है. वेद ज्ञान रहित ब्राह्मण को श्राद्ध कर्म में अधिकार नहीं है. ब्राह्मणों में सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण ज्ञानयोगी या ज्ञाननिष्ठ कहे गये हैं. ऐसे ब्राह्मण का सभी कर्मों में अधिकार होता है और इन्हें ही सबसे पहले हव्य-कव्य प्रदान करने का शास्त्रीय नियम है.
ब्राह्मण चार प्रकार के होते हैं -ज्ञाननिष्ठ, तपस्वी, वेदपरायण और यज्ञादि करने वाले ब्राह्मण. इन चारों में यदि ज्ञाननिष्ठ ब्राह्मण को श्राद्ध में भोजन करा कर दक्षिणा दी जाती है तो ग्रहस्थ की सात पीढियां तर जाती है, ऐसा मनु का कहना है. अनपढ़, जटाधारी, जुआरी, वैद्य, मन्दिर में पूजा से जीविका चलाने वाला, गायक, भेड़-बकरी पालने वाला, कुत्ता पालने वाला, वेतन लेकर पढाने वाला, जारज का अन्न खाने वाला, तेल का व्यापारी या तेल निकालने वाला, मांस बेचने वाला या किसी प्रकार व्यापार करने वाले ब्राह्मण को श्राद्ध में कदापि नहीं खिलाना चाहिए. ऐसे ब्राह्मणों को दान और भोजन कराने से वह अन्न राक्षसों के पेट में जाता है.
मन्दिर के पुजारी को श्राद्ध का भोजन और दान लेने का अधिकार नहीं है. यह सभी स्मृतियों, मत्स्य और विष्णुपुराण में भी वर्णित है. यदि कोई ज्ञाननिष्ठ आचार्य है जिसे वेदांगों का ज्ञान है तो वह ज्योतिष जानकर भी उसका बिजनेस नहीं करता. ऐसा ब्राह्मण श्राद्ध कर्म में स्वीकार्य है. श्राद्ध कर्म में काना, लंगड़ा और अँधा ब्राह्मण खिलाने से सैकड़ों ब्राह्मण खिलाने का फल नाश होता है. व्यापार वृत्ति से जीने वाले को श्राद्ध का अन्न खिलाने से न तो इहलोक में और न परलोक में कोई फल मिलता है.
ब्राह्मण साक्षात् देवता है क्योकि उसमे शास्त्र और धर्म की प्रतिष्ठा है. जिस ब्राह्मण में सत्य की प्रतिष्ठा है वह ब्राह्मण स्वयं नारायण ही है. ऐसे ब्राह्मण को दिया गया दान सभी त्रिदेवों को प्राप्त होता है. ब्राह्मण को किसी प्रकार का व्यापार वर्जित है. यहाँ समस्त ब्राह्मण जाति का जिक्र नहीं है, जो ब्राह्मण जन्म प्राप्त करने के बाद ब्राह्मण कर्म को नहीं करता उसके लिए ये नियम नहीं बनाये गये हैं. मनु ने यह नियम ब्राह्मण कर्म करने वाले ब्राह्मणों के लिए बनाये हैं. ब्राह्मण त्रिकाल संध्या करता है, वेद का स्वाध्याय करता है, वेद की शिक्षा देता है, तपस्या करता है और सत्य परायण होते हुए धर्म पर चलता है और अन्यों को भी धर्म पर चलने के लिए प्रेरित करता है.

